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________________ सामाजिक व्यवस्था १३७ व्यञ्जन' : व्यञ्जन यनान्नं रुचिमापद्यते तद्दधिघृतशाकसूपादिः' अर्थात् जिन पदार्थों के साथ खाने से या मिलाने से खाद्य रुचिकर अथवा स्वाद उत्पन्न होता है, वे - दाल, दधि, घृत एवं शाक आदि - पदार्थ व्यञ्जन कहलाते हैं । महा पुराण में कई स्थलों पर व्यञ्जन के व्यवहृत होने का उल्लेख उपलब्ध है | महाकल्याण भोजन : चक्रवर्ती राजा और सम्पन्न व्यक्ति ही इसका उपयोग करते थे । यह खाद्य, स्वाद्य, लेह्य और पेय सभी भाँति के अद्भुत भोजन का सम्मिश्रण है । इसके सेवन से तृप्ति और पुष्टि दोनों ही मिलती है । अमृतगर्म मोदक : इसे अनेक प्रकार के अत्यन्त गरिष्ठ, सुगन्धित, स्वादिष्ट एवं रुचिकर पदार्थों से राजाओं एवं धनी व्यक्तियों के उपयोग के लिए बनाया जाता था । सूप : पकाये हुए फल, दाल आदि के रस को सूप कहते हैं । सर्पिगुड़पयोमिश्र शाल्योदन' : यह गुड़, घृत एवं दूध मिश्रित शाली चावल का अत्यन्त रुचिकर भात होता था । अमृतकल्पखाद्य' : यह धनाढ्य सम्पन्न व्यक्तियों एवं राजाओं का खाद्य पदार्थ था । इसमें अनेक प्रकार के सुस्वाद्य मसालों का प्रयोग होता था । इसका स्वाद मन को सुखकर एवं प्रिय था । पायस' : प्राचीन काल से ही खीर का विशेष महत्त्व रहा है । उत्तम सुगन्ध, रस एवं रूप युक्त खीर तैयार किया जाता था । शर्करामोदक' : शक्कर से बने हुए लड्डू को कहते हैं । खण्डमोदक" : यह खांड से निर्मित लड्डू होता है । १. पद्म ५३।१३६ नेमी चन्द्र शास्त्री - वही, पृ० १६७ ३. महा ३८।१८७ ४. वही ३७।१८८ ५. वही १२।२४३; पद्म ५३।१३५ ६. महा ४६ । ३१३ ७. वही ३७।१६८ ८. पद्म १२१।१६-१७; हरिवंश १६ | ६१ ६. वही ३४।१४ १०. वही ३४।१४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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