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________________ १३६ कुलित्थ' : यह कुलथी नामक विशेषान्न है । कङ्गव' : कांगनी संजक विशेष अन्न को कङ्ग कहते हैं । अतस्य : यह वर्तमान अलसी है । इसे अतीसी भी कहते हैं । यह खाद्य एवं तैल दोनों रूपों में प्रयुक्त होता है । सर्षप : सरसों के अर्थ में सर्षप का प्रयोग हुआ है । इसका तेल प्रयोग में आता है। कोशीपुट' : मूंग की भाँति इसका भी प्रयोग होता है । शस्य : यह धान है जो स्वतः उत्पन्न होता था । ६. तैयार भोजन सामग्री या पक्वान :- महा पुराण में कादम्बिक (हलवाई) का उल्लेख होने से विभिन्न प्रकार के मधुरान का प्रचलन होना स्वाभाविक था। भारत में प्राचीनकाल से पकवान शब्द व्यवहृत होता रहा है । इसे मधुरान्न की संज्ञा प्रदान की गयी है । इसका विवरण निम्नवत् है : जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन अपूप : प्राचीन भारत का प्रसिद्ध पक्वान्न अपूप या पूआ है। गेहूँ के आटे में चीनी और पानी मिलाकर घी में मन्द मन्द आँच में पके हुए मालपुए ही अपूप हैं । यह अनेक भाँति के बनाये जाते हैं। गुड़ मिलाकर निर्मित अपूप को गुड़ापूप कहते तिलापूप बनाने के लिए चावल के आटे में तिल मिलाते हैं । इनकी समता तथा हैं आजकल के अनरसे से होती है । भ्रष्टा- अपूप आधुनिक काल के नानखटाई या खौरी है । आज के बिस्कुट के पूर्वज चीनी मिश्रित 'भ्रष्टा- अपूप' ही थे । चूर्णिन अपूप गुझिया । है इसके अन्दर कसार या आटा भरकर निर्मित करते हैं । ' १. महा ३।१८८ २. वही ३।१८६ ३. वही ३।१८७ वती ३।१८७ ४. ५. पद्म २७ ६. वही ३।२३५ ७. महा ८।२३४ पद्म, ३४।१३; महा ८।२३६-२३७ प्रेमि चन्द्र शास्त्री -- आदि पुराण में प्रतिपादित भारत, पृ० १६६-१६७ C. 45 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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