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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
महा पुराण में वर्णित है कि वे ईर्ष्यावश मद्यपान के समय सपत्नियों को अधिक मदिरा पिला देती थीं, जिससे पति के साथ रमण में केवल वह ही सम्मिलित हो सके। परन्तु कभी-कभी सपत्नी (सौत) के प्रति सौहार्द्रता का भी उदाहरण प्राप्य है। इसी लिए क्लीरसे बदेर के मतानुसार समाज में दूसरी पत्नी का वही स्थान होता था जो कि पहली पत्नी का था ।
बहुपत्नीत्व को समाप्त करने के लिए जैनाचार्यों ने बहुत प्रयत्न किया । उन्होंने व्यवस्था दिया कि राजा को 'एकपत्नी व्रती' होना चाहिए, जिससे प्रजा उसका अनुकरण कर सके । बाद के जैनाचार्यों ने भी इस प्रथा को समाप्त करने का प्रयत्न करते रहे । शुभचन्द्र ने विक्रम संवत १६०८ में पाण्डव पुराण की रचना की थी। उन्होंने उसमें यह उल्लेख किया है कि सौत होने पर जो व्यक्ति अपनी कन्या को देता है, वह अपनी कन्या को कुएं में ढकेल देने के समान कार्य करता है। इस प्रथा का उल्लेख विवाह अध्याय में भी किया गया है । ऐसा प्रतीत होता है कि शिष्ट वर्ग ने इस प्रथा को मान्यता नहीं दी थी।
७. पर्दा प्रथा : जैन पुराणों के अवलोकन से पर्दा प्रथा का ज्ञान होता है। पद्म पुराण में वर्णित है कि वधू का वर के गृह में प्रवेश होने पर वह अपने मुख पर बूंघट रखती थी। महा पुराण में स्त्रियों को बूंघट रखे हुए चित्रित किया गया है। जैनसूत्रों में यवनिका (जवणिया) शब्द व्यवहृत है। किन्तु इसका तात्पर्य चूंघट (पर्दा) के लिए ज्ञात नहीं होता है।' जनेतर पुराणों में पर्दा प्रथा के प्रचलन और अप्रचलन दोनों ही प्रकार के स्थल प्राप्य है।
एक ओर हम देखते हैं कि महाकाव्यों में राजपरिवार की स्त्रियाँ पर्दे में रहती थीं, इसका उद्देश्य यह था कि रानियों को सामान्य लोग सामान्य रूप से न देख सकें।
१. महा ४४।२६२ २. हरिवंश ४४।१७ ३. क्लीरसे बदेर-वीमेन इन ऐंशेण्ट इण्डिया, लंदन, १६२५, पृ० ५१ ४. महा ६२१४१ ५. सोन्धकूपे क्षिपेत्पुत्री सापत्न्येयं ददीत यः । पाण्डव ७६५ ६. पद्म ८७० ७. महा ४३।४३ ८. जगदीश चन्द्र जैन-वही, पृ० २७१-२७२ ६. एस० एन० राय-वही, पृ० २८४-२८७
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