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________________ सामाजिक व्यवस्था विवाह होता था और उनका भी परिवार होता था । वसन्तसेना वेश्या अपनी माँ के घर से आकर सास की सेवा करती थी तथा अणुव्रतों प्रसन्न होकर उसके पति ने उसे स्वीकार लिया था । में कहा है कि वेश्याएँ सुशिक्षित, सुसंस्कृत तथा होती थीं । से विभूषित हो गई थी। जिससे वात्स्यायन ने अपने कामसूत्र विविध कलाओं में पारंगत ६. बहुपत्नी प्रथा : आलोचित जैन पुराणों के समय में समाज में एक से अधिक पत्नी रखने का उल्लेख प्राप्य है । परन्तु धनी, सम्पन्न एवं राजघरानों में ही इसका प्रचलन था । जैनागमों के परिशीलन से राजा के यहाँ तीन प्रकार के अन्तःपुरों का उल्लेख उपलब्ध है - जीर्ण अन्तःपुर ( वृद्धा स्त्रियों के लिए), नव अन्तःपुर (नवयुवती परिभोग्य स्त्रियों के लिए ) तथा कन्या अन्तःपुर ।' राजकुलों में अन्तःपुरों की व्यवस्था हेतु कञ्चुकी होते थे । कन्याओं के अन्तःपुरों में द्वारपालियाँ होती थीं ।" जैन पुराणों के अनुशीलन से ज्ञात होता है कि उस समय राजाओं के पास बहुत-सी रानियाँ होती थीं, जिन्हें वे अपने अन्तःपुर में रखते थे । उदाहरणार्थ, श्रीकृष्ण के अन्तःपुर में आठ पटरानियाँ थी, भरत के पास ६६,००० रानियां थीं, लक्ष्मण के पास १६,००० रानियाँ तथा आठ पटरानियाँ थीं, राम के पास ८,००० रानियाँ एवं चार पटरानियाँ थीं, रावण के पास थीं । ये वर्णन आख्यानात्मक एवं अतिशयोक्तिपूर्ण हैं, तथापि एक से अधिक रानियाँ होती थीं । पी० टामस का विचार है कि इन स्त्रियों को राजा लोग विवाह कर, क्रय कर अथवा पकड़वा कर अपने राजमहल के अन्तः पुर में रखते थे । " १८,००० रानियाँ राजाओं के पास स्त्रियों में सपत्नी के प्रति ईर्ष्या एवं कलह का होना स्वाभाविक था । इसलिए उनमें स्वभाव, मुख, वचन, काय एवं मन की अपेक्षा कुटिलता बनी रहती थी । " १. हरिवंश २१।१७६; तुलनीय - मृच्छकटिक, अंक ३ २. चकलकार - वही, पृ० १६८ ३. निशीथचूर्णी ६।१५१३ की चूर्णी; औपपातिकसूत्र ६, पृ० २५ ४. पद्म २६।४१ १२५ ५. वही २८१८ ६. महा १५/६६, ३७।३४-३६; हरिवंश ४४|५०, पद्म ५८।६६, ६४।१७-१८ ७. पी० टामस इण्डियन वीमेन थ्रू द एजेज, लन्दन, १६६४, पृ० ११६ ८. महा ६८।१६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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