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________________ सामाजिक व्यवस्था १२७ भास ने अपने प्रतिमा नाटक में सीता को घूंघट धारण किये हुये प्रदर्शित किया है । महाकवि कालिदास ने शकुन्तला को राजा दुष्यन्त के राजदरबार में भेजते समय घूँघट डालकर कुलीनता पर प्रकाश डाला है । वसन्तसेना (वेश्या) जैसे ही वधूपद प्राप्त करती है, वैसे ही अपना मुख ढँक लेती है । दूसरी ओर दृष्टि डालने पर ऐसा ज्ञात होता है कि सातवीं शती ई० के चीनी यात्री युवान च्वांग ने पर्दा प्रथा का कोई उल्लेख नहीं किया है । हर्ष के दरबार में उसकी बहन राज्यश्री बिना पर्दे के आयी थी, परन्तु राज्यश्री वर के सामने मुँह ढँक कर आयी थी । राजतरंगिणी में भी कहीं पर पर्दा प्रथा दृष्टिगत नहीं है । दसवीं शती के अरब यात्री अबू जैद ने दरबार में बिना पर्दे की स्त्रियों का उल्लेख किया । पर्दा प्रथा १००० ई० तक कुछ राजपरिवारों तक ही सीमित था । कथासरित्सागर में पर्दा प्रथा का उल्लेख अनुपलब्ध है । वस्तुतः हिन्दुओं में पर्दा प्रथा का प्रचलन मुसलमानों के आगमन से सम्यक् रूप से प्रारम्भ होता है । ' ८. पत्नी त्याग या तलाक प्रथा :- डॉ० अल्तेकर के अनुसार उस समय तलाक प्रथा नहीं था । किन्तु जैन पुराणों के अधोलिखित उद्धरणों से ज्ञात होता है कि आलोचित पुराणों के समय तलाक प्रथा का प्रचलन था । जैनाचार्यों ने समाज को सुव्यवस्थित ढंग से चलाने के लिए पति-पत्नी में पारस्परिक सौहार्द्रता का आदर्श प्रतिष्ठापित किया है। स्त्रियों के पातिव्रत के पालन पर विशेष बल दिया है । परन्तु यह आदर्श सर्वत्र कार्य रूप में क्रियान्वित नहीं हो पाता था । महा पुराण में वर्णित है कि पति-पत्नी में वैमनस्य के परिणामस्वरूप कभी-कभी पत्नी पर-पुरुष के साथ रमण करती थी। इस सम्बन्ध के परिणामस्वरूप वह अपने पति की हत्या भी कराती थी । यदि पति को पत्नी के विषय में यह ज्ञात हो जाता था कि उसका किसी पुरुष से अनुचित सम्बन्ध है, तब वह उसे घर से निकाल देता था ।" पद्म पुराण के अनुसार पति-त्यक्ता पत्नी अपने माता-पिता के घर में रहती थी। समाज में हमें इस प्रकार का भी उदाहरण उपलब्ध होते हैं, जब पति का पत्नी से सम्बन्ध नहीं १. अल्तेकर - वही, पृ० १६७ - २०८ तथा भगवत शरण उपाध्याय - गुप्त काल का सांस्कृतिक इतिहास, लखनऊ, १६६६, पृ० २१६-२२० अल्तेकर - वही, पृ० ६७ महा ७२।६३ २. ३. ४. वही ७१।२२६-२२८ ५. वही ४७।२०३ - २०६ पद्म १६।६ ६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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