________________
१२२
और बच्चों को क्रीड़ा कराना मुख्य था ।
(ब) दासी : घरेलू काम करने के लिए दासी होती थीं । २ सामान्यतः इनकी तीन श्रेणियाँ थीं— प्रथम, वे स्त्रियाँ जो गरीबी या अन्य परिस्थितिवश किसी के यहाँ नौकरी कर लेती थीं । ऐसी दासियों को मासान्त में वेतन दिया जाता था । द्वितीय, कुछ दासियाँ क्रीत होती थीं । इन्हें केवल भोजन एवं वस्त्र दिया जाता था । तृतीय, युद्ध के समय विजित देश से लायी गयी स्त्रियों को दासी बनाया जाता था । ये दासियाँ राजाओं के व्यक्तिगत कार्यों की देख-रेख करती थीं और वे अन्तःपुर में रहती थीं । पद्म पुराण में वर्णित है कि जो स्त्रियाँ बेची जाती थीं, उन्हें समाज के धनी एवं सम्पन्न व्यक्ति क्रय कर लेते थे ।" हरिवंश पुराण में इन दासियों में से नदी, कुआँ, तालाब आदि से जल भरने के कारण उन्हें 'घट- दासी' या 'पनिहारिन' कहा गया है । " (स) परिचारिका : इस वर्ग की सेविकाएँ नायक-नायिकाओं को मिलाने, शृङ्गार आदि करने, मनोविनोद करने, समाचार देने, रूठने पर मिलाने का काम करती थीं ।" बौद्ध और जैन आगमों में चार प्रकार की दासियों का उल्लेख उपलब्ध है । १. आमायदासी (घरदासी या गेहदासी ) - परिवार की दासी के कुक्षि से उत्पन्न सन्तान पर भी वैधानिक रूप से उसके स्वामी का अधिकार रहता था । २. क्रीतदासीक्रय की हुई दासी । ३. स्वतः दासत्व को प्राप्त दासी- प्रतिकूल एवं विषम परिस्थिति में दासी वृत्ति स्वीकार करने पर होता था । ४. भयदासी - युद्ध में विजित देश से लायी गयी स्त्रियों को दासी बनाया जाता था । "
आलोचित जैन पुराणों के रचना काल के अन्य साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि उस समय सेविका ( दासी) वृत्ति प्रचलित थी । नारद स्मृति, बृहस्पतिस्मृति,
जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
५.
६.
७.
१.
२. महा २०१५६, हरिवंश ४३।२
३.
पद्म ७१६४
४.
हरिवंश ८५२
पद्म २६।३५
हरिवंश ३३।४७-५०
वही ४३।२३; महा ७५ ४६४-४६५
कोमल चन्द्र जैन-बौद्ध और जैन आगमों में नारी - जीवन, अमृतसर, १६६७; पृ० १३६
८.
पद्म ६।३८१-४२२, २२।१४ - १८ महा १४।१६५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org