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________________ ११४ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन रहता था। किसी सीमा तक परिवार की सम्पत्ति में भी उन्हें सीमित अधिकार प्रदान किया गया था। महा पुराण में वर्णित है कि पिता की सम्पत्ति में पुत्र के समान पुत्रियाँ भी बराबर भाग की अधिकारी होती थीं। जैनेतर साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि पुत्राभाव में ही पिता के धन पर पुत्री का स्वत्व सम्भव था।' जहाँ तक हमारे आलोचित ग्रन्थों का सम्बन्ध है, प्रस्तुत प्रश्न पर महा पुराण द्वारा प्रकाश पड़ता है । इसके विवरणानुसार पिता की सम्पत्ति पर पुत्र के समान पुत्री का भी अधिकार होता था। प्रस्तुत विवरण का स्वरूप इतना सामान्य है कि यह स्पष्ट नहीं हो पाता कि जैनाचार्यों के मत में तत्कालीन प्रचलित परम्परा के लिए सम्मत 'स्त्रीधन' को किस सीमा तक मान्यता प्रदत्त की गयी थी। तथापि यह नितान्त असम्भाव्य है कि महा पुराण के विवरण का तात्पर्य स्त्रीधन से ही है। (ii) पत्नी : मूलतः निवृत्तिमूलक और प्रवृत्तिमूलक इन दो धाराओं द्वारा भारतीय संस्कृति का नियमन हुआ है । निवृत्तिपरक जीवन में स्त्री अथवा पत्नी की अनिवार्यता भी नहीं थी और वस्तुतः इन्हें हेय दृष्टि से भी देखा गया है। किन्तु प्रवृत्तिप्रधान जीवन की प्रधान प्रतिष्ठा पत्नी में थी, जो गार्हस्थ्य जीवन की की और नियामिका मानी जाती थी । पद्म पुराण में पत्नी के लिए 'माम' शब्द का प्रयोग हुआ है। पद्म पुराण में विवाहोपरान्त वर-वधू के गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने पर संयमित जीवन पर विशेष बल दिया गया है। वर-गृहागमन पर वधू अपने मुख पर चूंघट रखती थी, जिससे यह ज्ञात होता है कि उस समय स्त्रियाँ मुख पर घूघट रखती थीं और पर्दा-प्रथा का प्रचलन था । महा पुराण के अनुसार सुन्दर स्त्री विचित्र पदन्यासा अर्थात् अनेक प्रकार से चरण रखने वाली, रसिका (रसीली) एवं सालंकारा होकर अपने पति का अनुरञ्जन करती थी। पद्म पुराण में उल्लिखित है कि कुलङ्गनाएँ अपने पति के अभिप्राय का अनुकरण करती थीं। उक्त पुराण १. याज्ञवल्क्य पर मिताक्षरा २।१४३, ११५, १२३, १२४, १३५, प्रभावकचरित, पृ० ३३७-३८ २. पुत्यश्च संविभागाहीः समं पुनः समाशकः । महा ३८.१५४; तुलनीय-कात्यायन ६२१-२७ ३. एस० एन० राय-वही, पृ० २६८ ४. पद्म २४।१०१ ६. महा ४३।४३ ५. वही ८६६ ७. पद्म ८११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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