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सामाजिक व्यवस्था
कलाओंके सीखने के उपरान्त पिता को अपनी कन्याओं के विवाह की चिन्ता होती है । माताएँ तो कन्याओं के शरीर रक्षा करने में उपयुक्त होती हैं और उनको दान देने में पिता ही उपयुक्त होते हैं ।' उक्त पुराण में उल्लिखित है कि कन्या के विवाह योग्य होने पर माता-पिता उसके विवाह के लिए चिन्तित होते हैं । २ युवावस्था में कन्याओं का विवाह पिता उनके योग्य वर से करता है। इसके अतिरिक्त बालाएँ स्वयं वर का चयन कर स्वयंवर पद्धति द्वारा विवाह करती थीं। जैन पुराणों के अनुसार कुछ कन्याएँ गान्धर्व विवाह भी करती थीं ।" कन्या के माता-पिता योग्य वर ढूंढकर मंत्र सहित विधिवत कन्या का विवाह कर उसको दक्षिणा आदि प्रदान कर विदा करते थे । पद्म पुराण में कन्या के विदाई का करुणापूर्ण दृश्य चित्रित है । " हरिवंश पुराण में वर्णित है कि कभी-कभी कन्याओं को बलपूर्वक अपहरण कर लाते थे और अपने यहाँ उनका विधिपूर्वक विवाह करते थे ।" जैन पुराणों के अनुसार कतिपय कुमारी कन्याएँ वैराग्यवश परिव्राजिका की दीक्षा ग्रहण कर लेती थीं । ' विदुषी कन्याओं का विवाह शास्त्रार्थ में विजित पुरुष के साथ किया जाता था । "
कन्याओं को सम्पत्ति का अधिकार : प्रारम्भिक काल में स्त्रियों को सम्पत्ति का अधिकार था । वे अपनी पृथक् सम्पत्ति रख सकती थीं, जिसे स्त्रीधन से सम्बोधित किया गया है । स्त्रीधन को मिताक्षरा और दायभाग में विवेचित किया गया है । दायभाग स्त्रीधन के अन्तर्गत आता है, क्योंकि स्त्रियों को स्वेच्छा से उनके सम्बन्धी उपहार आदि ( सौदायिक) देते थे । उस पर स्त्रियों का पूर्णतः अधिकार
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पद्म ८।१०
वही ८६
वही १५।२४
११३
महा ६३८ पद्म २४ । १२१; तुलनीय - ब्रह्मचर्येण कन्या युवानं विन्दते पतिम् ।
विष्णु पुराण ४|१३|१४
पद्म ८१०८, हरिवंश ४५।३७
महा ७५।३४, पद्म १०।६-११
पद्म ८।८
हरिवंश ४४।२३-२४
पद्म २१।१३३; महा २४।१७६-१७७ वही २३।१०
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