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________________ सामाजिक व्यवस्था में अन्यत्र वर्णित है कि पत्नी अपने पति को कुमार्गी होने से बचाती है । उदाहरणार्थ, मन्दोदरी ने अपने पति रावण को कुमार्ग के परित्याग के लिए बहुत समझाया था ।' महा पुराण में पति-पत्नी के संयोग-क्रिया का रोचक वर्णन उपलब्ध हैं । जैनेतर ग्रन्थ रामायण के अनुसार पिता, भ्राता एवं पुत्र उसे सीमित आनन्द देते हैं, परन्तु पति पत्नी को अपार आनन्द देता है । हरिवंश पुराण में उल्लिखित है कि स्त्री तभी तक मर्यादित है जब तक स्वामी मर्यादा में रहता है। महा पुराण में विवाहिता नारी को घूमने-फिरने की पूर्ण स्वतन्त्रता थी ।" स्त्री की श्रेष्ठता का प्रतिपादन करते हुए उक्त पुराण में कथित है कि पति से ही पत्नी की शोभा नहीं होती है, अपितु पति भी पत्नी से शोभित होता है। पद्म पुराण में उल्लिखित है कि उस समय ऐसी साध्वी महिलाएँ थीं जो कि पर-पुरुष के सम्मुख होकर बात नहीं करती थीं, अपितु मध्य में तृण रखकर परोक्ष रूप में बात करती थीं। इस प्रकार की स्त्रियों को सब प्रकार के आचारों का ज्ञान होता था । पतिव्रता स्त्रियाँ पातिव्रत धर्म के रक्षार्थ अपने प्राणों की आहुति दे देती थीं। जैनेतर ग्रन्थों के अनुसार पत्नी का सब आनन्द उसके पति में केन्द्रित होता था । " यद्यपि जैन धर्म में मद्यपान निषिद्ध था, तथापि महा पुराण में स्त्री-पुरुष दोनों द्वारा मद्यपान का उल्लेख प्राप्य है । महा पुराण में वर्णित है कि नारियाँ मद्यपान करती थीं । श्राविकाएँ मद्यपान नहीं करती थीं । कामोद्दिपनार्थ पति-पत्नी मदिरा पीते थे । कोई स्त्री ईर्ष्याविश सपत्नियों को अधिक मदिरा पिला देती थीं । " परन्तु सर्वत्र सपत्नी के प्रति ईर्ष्या का भाव परिलक्षित नहीं होता है । हरिवंश पुराण में हमें सपत्नी ( सौत ) के आने पर प्रसन्नता का दृष्टान्त भी मिलता है । १२ वस्तुतः पारिवारिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए जैनाचार्यों ने सौहार्दपूर्ण वातावरण निर्मित करने का प्रयास किया था । पद्म पुराण में पत्नी को पति का १. पद्म ७३५१-५२ २. महा ३५।१५८- २३७ रामायण २।४०।३ ३. ४. हरिवंश १७।१६ ५. महा २७६ १०. रामायण २|३७|३०, २।२७।६; ६/८६, रघुवंश ६ | १७; मत्स्य पुराण ब्रह्माण्डपुराण ३१८६४ ११. महा ४४।२८६ - २६२ १२. हरिवंश ४४।१७ Jain Education International महा ६।५६ पद्म ४६।११ ८. वही ५३।१२८ ६. वही ४६।८४ ६. 19. ११५ ब्रह्मवैवर्त पुराण ३५।११६ कुमारसम्भव १५४।१६६; वायु पुराण ७० ६७; For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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