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प्रणयन किया है । पारम्परिक पुराणों की तरह जैन पुराणों की संख्या सीमित नहीं है । जैन पुराणों में कथारस गौण और धर्मभाव प्रधान है । इस साहित्य में जहाँ एक ओर किसी एक या एकाधिक शलाकापुरुषों का जीवनवर्णित है, वहीं दूसरी ओर भारत के सांस्कृतिक इतिहास की बहुमूल्य सामग्री भी निबद्ध है । इस दृष्टि से जैन पुराण भारतीय संस्कृति के अक्षय भण्डार हैं ।
जैन पुराणकारों का मन्तव्य सदैव लोकोन्मुखी रहा है । यही कारण है कि जैनाचार्यों ने अपने धर्म के प्रचारार्थ सर्वप्रथम जनसाधारण की बोलचाल की भाषा में ही जैन साहित्य का निर्माण किया । पारम्परिक पुराणों का रचना-काले अज्ञात है, किन्तु जैन पुराणों के रचना - काल तथा आचार्यों के विषय में पर्याप्त प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध है । जैन धर्म के प्रारम्भिक साहित्य प्राकृत में है । प्राकृत के बाद संस्कृत भाषा का अधिक प्रभाव बढ़ने से संस्कृत में पुराणों का प्रणयन हुआ । इसके बाद जब अपभ्रंश लोकप्रिय हुई, तो जैनाचार्यों ने अपभ्रंश में ग्रन्थ रचे । इसके साथ ही साथ जैनों ने क्षेत्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए क्षेत्रीय भाषाओं में भी पुराणों का सृजन किया। जैन पुराणों का प्रणयन गुप्तोत्तर काल से हुआ, किन्तु वर्ण्य विषय की दृष्टि से ये चिरपुरातन कहे जा को ईसा की छठी शती से अट्ठारहवीं शती के मध्य इनकी संख्या शताधिक है, किन्तु अध्ययन की सुविधा के लिए पद्म पुराण, हरिवंश पुराण और महा पुराण (आदि पुराण एवं उत्तर पुराण) को विशेष रूप से ग्रहण किया गया है, जो जैन पुराणों के प्रतिनिधिभूत हैं । इन पुराणों का रचनाकाल सातवीं शती ईसवी से दशवीं शती ईसवी के मध्य है ।
सकते हैं । जैन पुराणों रखा जा सकता है ।
विगत कतिपय वर्षों से विद्वानों का ध्यान जैन वाङ्मय की ओर विशेष रूप से आकृष्ट हुआ है । परिणामस्वरूप उनके अध्ययन, अध्यापन एवं अनुसंधान के प्रयत्न भी हुए हैं । इसी श्रृंखला में जैन पुराणों के अनुशीलन के भी कतिपय प्रयत्न हुए हैं, किन्तु देश-विदेश में ऐसा एक भी प्रयत्न नहीं हुआ है, जिससे विभिन्न जैन पुराणों की सामग्री को एक जगह उपयोग करके तत्कालीन भारतीय सांस्कृतिक जीवन का सम्पूर्ण रेखांकन करके एक पूर्ण मनोज्ञ चित्र प्रस्तुत किया जा सकता। इसी को दृष्टि में रख कर यह एक लघु प्रयास किया गया है ।
प्रस्तुत अध्ययन के लम्बे अन्तराल में मुझे अनेक विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ा । विषय की व्यापकता, अनुसंधान सामग्री की दुर्लभता एवं अन्य बहुविध
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