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________________ प्राक्कथन भारतीय वाङमय में परम्परागत पुराणों के समानान्तर जैन पुराणों की एक अविच्छिन्न धारा दृष्टिगोचर होती है। पुराण भारतीय इतिहास के अजस्र स्रोत हैं। इनमें सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक पक्षों से सम्बन्धित प्रभूत सामग्री उपलब्ध होती है। वस्तुतः पुराणों को 'भारतीय संस्कृति का विश्वकोश' की अविधा प्रदान की जा सकती है। पुराण साहित्य भारतीय संस्कृति की वैदिक और जैन धाराओं में समान रूप से उपलब्ध होता है । बौद्धों ने पुराण नामधारी किसी भी ग्रन्थ की न तो रचना की और न ही उनको ऐसा करने की आवश्यकता थी । 'इतिहास पुराणाभ्यां वेदं समुपद्व्हयेत्' की प्रेरणा से वैदिक परम्परा में अष्टादश पुराणों तथा अनेक उपपुराणों की रचना हुई है। पारम्परिक पुराणों का विकास आख्यान, इतिहास, गल्प, गाथा एवं उपाख्यान से हुआ है। जैन पुराण साहित्य विशाल एवं बहुविध हैं। जैन पुराणों का उद्भव आदि तीर्थंकर ऋषभदेव से माना जाता है, जो गुरु-परम्परा द्वारा विकसित हुआ। जैन पुराणों के उद्भव में तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं धार्मिक परिस्थितियों की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही है। जैन परम्परा में बारह प्रकार-~-अरहन्त, चक्रवर्ती, विद्याधर, वासुदेव, चारणवंश, प्रज्ञा श्रमण, कुरुवंश, हरिवंश, इक्ष्वाकुवंश, काश्यपवंश, वादि (वाचक तथा नाथवंश-के पुराणों की परम्परा का उल्लेख मिलता है (षटखंडागम खण्ड १, भाग १, धवलाटीका १.१२, पृष्ठ ११३) । सामान्यतया जैन परम्परा में चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ नारायण, नौ प्रतिनारायण एवं नौ बलभद्र इन तिरसठ शलाकापुरुषों के जीवन-चरित को आधार बना कर अनेक पुराणों एवं चरित्र ग्रन्थों का निर्माण किया गया है । जैन पुराणों की कथावस्तु रामायण, महाभारत एवं त्रिषष्टिशलाकापुरुषों के जीवन पर आधारित है । यह साहित्य सामान्यतया दिगम्बरों में 'पुराण' तथा श्वेताम्बरों में 'चरित्र' या 'चरित' नाम से अभिहित है। वस्तुतः चरित्र ग्रन्थ इसी विधा के अन्तर्गत आते हैं । जैनाचार्यों ने प्राकृत, संस्कृत एवं अपभ्रश के अतिरिक्त अनेक प्रान्तीय भाषाओं-तमिल, तेलगू, कन्नड, मलयालम, गुजराती, राजस्थानी, मराठी, हिन्दी आदि--में भी प्रचुर मात्रा में ग्रन्थों का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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