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के अनुशीलन को अभी तक सन्तोषजनक एवं अपेक्षित स्थान नहीं प्राप्त हो सका है, तथापि इस तथ्य को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है कि विगत कई वर्षों से संगोष्ठियों एवं सांस्कृतिक सम्मेलनों में इसे समुचित एवं समादृत स्थान दिया जा रहा है । यह परम सन्तोष का विषय है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग ने जैन संस्कृति से सम्बन्धित कतिपय महत्त्वपूर्ण शोध-प्रबन्ध तैयार कराये हैं।
"जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन" नामक शोध-ग्रन्थ का पुरोवाक लिखने में मुझे विशेष गौरव का अनुभव हो रहा है। प्रस्तुत रचना मेरे निर्देशन में अवश्य तैयार हुई है, किन्तु इसे वर्तमान कलेवर में प्रतिष्ठित करने का समस्त श्रेय मेरे अनन्य-सामान्य अन्तेवासी डॉ० देवी प्रसाद मिश्र को है । सांस्कृतिक तत्त्वों के संकलन, समायोजन एवं पूर्वाग्रह-निरपेक्ष-प्रस्तुतीकरण जैसी इतिहास-लेखन की सुग्राह्य शैली को अपनाकर डॉ० मिश्र ने प्रस्तुत ग्रन्थ को सुपाठ्य बना दिया है।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि अनेक विशेषताओं द्वारा अन्तनिहित, प्राञ्जल एवं परिष्कृत भाषा में प्रणीत प्रस्तुत रचना का सुधी पाठक न केवल समादर करेंगे, अपितु इसके गुण-दोष के विवेचन में अपनी मनीषा को संलग्न करेंगे, शोध-जिज्ञासु अनुसन्धान समरूप एवं समस्तरीय ग्रन्थों के प्रणयनार्थ प्रयास करेंगे तथा सामान्य पाठक भी इसे पढ़कर जैन पुराणों के ऐतिहासिक महत्त्व का मूल्यांकन कर सकेंगे।
विजया दशमी २-१०-१६८७ इलाहाबाद
प्रो० सिद्धेश्वरी नारायण राय प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग
इलाहाबाद विश्वविद्यालय
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