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________________ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन मान्य था और प्रतिलोम विवाह को मान्यता प्रदान नहीं की गई है, जिसके स्पष्ट निर्देश गौतमधर्मसूत्र, वशिष्ठधर्मसूत्र, मनुस्मृति, याज्ञवल्क्यस्मृति आदि ग्रन्थों में उपलब्ध है ।' ६६ उक्त परम्परा जैन पुराणों के विचार के अधिक सन्निकट है । महा पुराण में सवर्ण विवाह का उल्लेख करते हुए, उस विकल्प विधि की ओर भी संकेत है, जिसके अनुसार चारों वर्णों को अपने वर्ण में ही विवाह का विधान था । विशेष परिस्थिति में क्रम से अपने नीचे वर्ण की कन्या से विवाह करने की छूट थी । २ एतदर्थ जैन पुराणों में उल्लिखित दो स्थल विशेषतः ध्यातव्य है, जो अनुलोमविधि की मान्यता की ओर स्पष्टतया संकेत करते हैं । प्रतिलोम विवाह के निदर्शक प्रमाण इन पुराणों में नहीं उपलब्ध हैं । दूसरी ओर स्थिति यह है कि धर्मशास्त्रों की भाँति ही जैनेतर पुराण ग्रन्थ असगोत्र, असप्रवर और असपिण्ड विवाह के पक्ष में कदापि नहीं हैं । किन्तु जैन परम्परा के नियामक आगमों तथा जैन पुराणों से यह विदित होता है कि इस कोटि के विवाहों का प्रचलन तत्कालीन समाज में अवश्य था । उदाहरणार्थ, भाई-बहन, मामा, बुआ, मौसी की लड़की, सौतेली माता, देवर, मामाफूफा, ममेरी बहन आदि के साथ विवाह का उल्लेख प्राप्य है । पद्म पुराण में शिष्य द्वारा गुरु पुत्री के साथ भी विवाह का उल्लेख मिलता है । इसी पुराण में गुरु के यहाँ साथ-साथ पढ़ते हुए शिष्य - शिष्या आपस में विवाह करते थे ।" सामान्यतया वैदिक धर्म में उक्त विवाह करना निषिद्ध था । तथापि कतिपय स्मृतिकारों ने प्रायश्चित्त सहित इसकी स्वीकृति प्रदान कर दी थी । न्यूनाधिक अंशों में उक्त जैन परम्परा के भेद का कारण स्थानीय भिन्नता थी । क्योंकि जैसा कि महामहोपाध्याय पी० वी० काणे ने स्पष्ट किया है कि 'मातुल १. एस० एन० राय - वही, पृ० २२७ २. महा १६।२४७ ३. जगदीश चन्द्र जैन - वही, पृ० २६५ - २६६; पद्म ८।३७३, ६५।३१; हरिवंश ३३।२१, ६।१८; महा ७।१०६, १०।१४३, ७३|१०५ तुलनीय - चकलदारसोसल लाइफ इन ऐंशेण्ट इण्डिया स्टडीज़ इन वात्स्यायनन्स कामसूत्र, पृ० १३३ पद्म २६।६-१३ ४. ५. वही २५।५४ ६. बौधायनधर्मसूत्र १।१६ - २६; आपस्तम्बधर्मसूत्र १।७।२१।८ ७. आपस्तम्बधर्मसूत्र २।५।११।६; मनु ११।१७२-१७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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