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________________ सामाजिक व्यवस्था १६. कूलचर्या क्रिया : वर्णलाभ क्रिया के पश्चात् पूजा, दान, निर्दोष आजीविका, आर्य पुरुषों के छ: कार्य आदि कुलचर्या क्रिया के लक्षण हैं, जिनका पालन किया जाता था । जैनाचार्य जिनसेन ने इसे कुलधर्म वर्णित किया है।' २०. गृहीशिता क्रिया : कुलचर्या के उपरान्त वह पुरुष धर्म में दृढ़ता को धारण करता हुआ गृहस्थाचार्य रूप गृहीशिता क्रिया सम्पन्न करता है, जो अन्य गृहस्थों में न पायी जावे ऐसी शुभवृत्ति, क्रिया, मंत्र, वर्णोत्तमता, शास्त्रज्ञान तथा चारित्रक गुण आदि गृहीश में होनी चाहिए । वर्णोत्तम, महीदेव, सुश्रुत, द्विजसत्तम, निस्तारक, ग्रामपति तथा मानार्क इत्यादि उपाधियों से उसका सम्मान किया जाता था ।२ २१. प्रशान्ति क्रिया : वह गृहस्थाचार्य अपनी गृहस्थी के भार को समर्थ योग्य पुत्र को सौंप देता है और स्वयं उत्तम शान्ति का आश्रय लेता है। विषयों में आसक्त न होना, नित्य स्वाध्याय करने में तत्पर रहना तथा नाना प्रकार के उपवासादि करते रहना प्रशान्ति क्रिया कहलाती है । २२. गृहत्याग क्रिया : गृहस्थाश्रम में स्वतः को कृतार्थ मानता हुआ, जब वह गृहत्याग करने के लिए उद्यत होता है, तब गृहत्याग क्रिया की विधि की जाती है। इस क्रिया में सर्वप्रथम सिद्ध भगवान् का पूजन कर समस्त इष्ट जनों को बुलाकर और पुनः उनको साक्षीपूर्वक पुत्र के लिए सब कुछ सौंपकर गृहत्याग करते हैं। गृहत्याग करते समय वह जेष्ठ पुत्र को बुलाकर उसको यह उपदेश देता है कि-'हे पुत्र ! तुम कुलक्रम का पालन करना और धन का तीन भागों में विभाजन कर इसका सदुपयोग करना । धन का एक भाग धर्म-कार्य में, दुसरा भाग गृहकार्य में तथा तीसरा भाग पूत्र-पूत्रियों में समानतः बाँटना । तुम मेरी सब सन्तानों का पालन करना तथा तुम शास्त्र, सदाचार क्रिया, मंत्र और विधि के ज्ञाता हो। इसलिए आलस्यरहित होकर देव और गुरुओं की पूजा करते हुए अपने कुलधर्म का पालन करना।' इस प्रकार जेष्ठ पुत्र को उपदेश देकर वह द्विज निराकुल होकर दीक्षा ग्रहण करने के लिए अपना घर छोड़ देता है। १. मह। ३८।१४२-१४३ २. वही ३८।१४४-१४७ ३. वही ३८।१४८-१४६ ४. वही ३८।१५०-१५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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