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सामाजिक व्यवस्था है। जिसके कुल में दोष लग गया हो वह राजा की अनुमति से कुल-शुद्ध करके यज्ञोपवीत धारण कर सकता है । यदि उसके पूर्वज यज्ञोपवीत धारण करते होंगे तभी ऐसी शिथिलता दी जा सकती है। २ नृत्य करना, गायन करना आदि विद्या एवं शिल्प से आजीविका करने वाले तथा अयोग्यकुल में उत्पन्न हुए व्यक्ति यज्ञोपवीत धारण करने के अधिकारी नहीं हैं । यदि ऐसे कुल में उत्पन्न हुआ व्रती व्यक्ति यज्ञोपवीत धारण करने की इच्छा करता है, तो उसे संन्यासमरण पर्यन्त तक एक ही धोती पहननी होती है।
(iv) नियम : यज्ञोपवीतधारी को महा पुराण में नियम से रहने को निर्देशित किया गया है। उसे निरामिष भोजन, विवाहिता कुलस्त्री का सेवन, आरम्भिकी हिंसा का त्याग करना होता है ।" समीचीन मार्ग से भ्रष्ट होने वाले व्यक्ति का यज्ञोपवीत पाप का सूत्र होता है। पापाचरण करने वालों का यज्ञोपवीत पाप चिह्न बताया गया है।
१५. व्रतचर्या क्रिया : ब्रह्मचर्य व्रत के योग्य कमर में मौजीबन्धन, जाँघ में सफेद धोती, वक्षस्थल पर यज्ञोपवीत और सिरत्व मुण्डन-इन चिह्नों को धारण करने वाले बालक की व्रतचर्या क्रिया होती है। प्रायः इस प्रकार बढ़े हुए स्थूल हिंसा का त्याग आदि व्रत उसे धारण करने का विधान है। ब्रह्मचारी को कठोर व्रत तब तक धारण करना चाहिए, जब तक समस्त विद्याएँ समाप्त न हो जाएँ। ब्रह्मचारी को गुरु के मुख से श्रावकाचार, आध्यात्मशास्त्र, व्याकरण, न्याय, अर्थशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र, छन्दशास्त्र, शकुनशास्त्र, गणितशास्त्र आदि विषयों को पढ़ने की व्यवस्था है।'
१. महा ४०1१६७ २. वही ४०।१६८-१६६ ३. वही ४०।१७० ४. वही ४०।१७१ ५. वही ४०।१७२ ६. वही २६।११८ ७. वहा ४११५३ ८. वही ३८।१०६-१२०, ४०।१६५-१७३; तुलनीय-शतपथब्राह्मण ११।५।४।१
१७; आश्वलायनगृह्यसूत्र १।२२।२; पारस्करगृह्य सूत्र २।३; काठकगृह्यसूत्र ४१।१७; गौतम २।१०-४०; मनु २।४६-२४६
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