SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७२ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन आदि से उपहारस्वरूप प्राप्त धन एकत्र कर कालान्तर में पिता के धन का उत्तराधिकार प्राप्त करने के समय उसे देने का नियम है ।' बहिर्यान क्रिया का विशेष मंत्र इस प्रकार है-'उपनयननिष्क्रान्तिभागी भव, वैवाहनिष्क्रान्तिभागी भव, मुनीन्द्रनिष्क्रान्तिभागी भव, सुरेन्द्रनिष्क्रान्तिभागी भव, मन्दराभिषेकनिष्क्रान्तिभागी भव, यौवराज्यनिष्क्रान्तिभागी भव, महाराज्यनिष्क्रान्तिभागी भव, परमराज्यनिष्क्रान्तिभागी भव, आर्हन्त्यनिष्क्रान्तिभागी भव' ।२ ६. निषद्या क्रिया : इस क्रिया में बालक को मंगलकारक आसन पर बैठाया जाता है। इस आसन के समीप मंगल-कलश की स्थापना की जाती है । निषद्या क्रिया में सिद्ध भगवान् की पूजा आदि सभी विधियाँ पूर्ववत् विहित हैं । इस क्रिया के कारण बालक भविष्य में निरन्तर दिव्य आसनों पर आसीन होने की योग्यता का अर्जन करता है। निषद्या क्रिया में विनियुक्त मन्त्र इस प्रकार हैं-'दिव्यसिंहासनभागी भव, विजयसिंहासनभागी भव, परमसिंहासनभागी भव' ।' १०. अन्न प्राशन क्रिया : जन्म के सात-आठ मास पश्चात् बालक को प्रथम बार अन्न खिलाया जाता है, इसे अन्नप्राशन क्रिया कहा जाता है। अन्नप्राशन क्रिया के पूर्व अर्हन्त की पूजा का विधान है। अन्नप्राशन क्रिया का विशेष मंत्र इस प्रकार है .. 'दिव्यामृतभागी भव, विजयामृतभागी भव, अक्षीणामृतभागी भव' ११. व्युष्टि क्रिया (वर्ष वर्धन) : 'वि' पूर्वक 'उष्' धातु से 'ति' प्रत्यय से व्युष्टि शब्द बना, जो विशेष रूप से जलने के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। १. मह। ३८१६०-६२) तुलनीव.गोभिल २।८।१-७, खादिर २।३।१-५; काठगृह्यसूत ३७-३८ २. महा ४०११२५-१३६, तुलनीय-पारस्करगृह्यसूत्र १।१७; बौधायनगृह्यसूत्र १११२ ३. वही ३८१६३-१४ ४. वही ४०।१४० ५. वही ३८६५; तुलनीय-आश्वलायनगृह्यसूत्र १।१६।१-६; शांखायनगृह्यसूत्र १-२७; आपस्तम्बगृह्यसूत्र १६६१-२; मनु २॥३४; याज्ञवल्क्य १११२ ६. महा ४०११४१-१४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy