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________________ ৩৭ सामाजिक व्यवस्था आशीर्वाद देकर उसके समस्त अंशों का स्पर्श करे और उसमें नाना संकल्प करे । उसके जरायु पटल को नाभि की नाल के साथ-साथ किसी पवित्र जमीन को खोदकर मंत्र पढ़ते हुए गाड़ देना चाहिए । 'सम्यग्दृष्टे सम्यग्दृष्टे सर्वमातः वसुन्धरे वसुन्धरे स्वाहा - ' मंत्र से अभिमंत्रित कर उस भूमि में जल और अक्षत डालकर पाँच प्रकार के रत्नों के नीचे वह गर्भ का मल रख देना चाहिए। तदुपरान्त गरम जल से माता को स्नान कराना चाहिए । संतान के जन्म के तीसरे दिन 'अनन्तज्ञानदर्शी भव' मंत्र पढ़कर पुत्र को गोदी में उठाकर आकाश दिखाने तथा यथाशक्ति दान देने का उल्लेख उपलब्ध है । ७. नामकर्म क्रिया : संतान उत्पन्न होने के बारह दिनों के बाद नामकर्म क्रिया का विधान है । माता, पिता तथा संतान के मंगलकारक एवं सुखदायक दिन को यह क्रिया करने का विधान है । इस क्रिया में अपने वैभव के अनुसार अर्हन्तदेव, ऋषियों की पूजा तथा द्विजों का सत्कार करना अनिवार्य है । संतान का नाम वंशवर्धक होना चाहिए । जैनियों के अनुसार 'घटपत्र - विधि' का प्रयोग कर अर्हन्तदेव के १००८ नामों में से कोई नाम ( सन्तान का ) रखना प्रशस्त माना गया है । २ नामकर्म क्रिया का विशेष मंत्र इस प्रकार है- 'दिव्याष्टसहस्रनामभागी भव विजयाष्टसहस्रनामभागी भव, परमाष्टसहस्रनामभागी भव । आचार्य गुणभद्र क्रिया अन्नप्राशन क्रिया के बाद भी की जा सकती है ।" अनुसार नामकर्म ८. बहिर्यान क्रिया : सन्तान जन्म के दो-चार माह बाद किसी दिन शुभवेला में तुरही आदि मंगलवाद्यों को बजाते हुए पहली बार उसे प्रसूतिगृह से बाहर ले जाने का नियम है, इसे बहिर्यान क्रिया कहते हैं । जिस दिन यह क्रिया की जाय उसी दिन से माता या धाय की गोद में बैठे हुए शिशु का प्रसूतिगृह से बाहर ले जाना शास्त्र सम्मत है । इस क्रिया को करते समय बालक को भाई-बन्धु १. २. महा ४०।११०-१३१ वही ३८८७-८८ तुलनीय - आपस्तम्ब गृह्यसूत्र १५।८ - ११; आश्वलायनगृहसूत्र १।१५।४-१०; बौधायनगृह्यसूत्र २।१।२३ - ३१; वैखानस ३।१६; पारस्करगृहसूत्र १।१७, विष्णुपुराण ३|१०|८; ज्ञातव्य है कि 'घटपत्त्रविधि' आधुनिक युग में प्रचलित लाटरी के समान रही होगी । ३. महा ४०।१३२-१३३ ४. वही ७५। २५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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