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८८ अध्यात्म प्रवचन ! भाग तृतीय हैं, जिनसे जड़वाद अथवा भौतिकवाद का प्राचीन काल में अस्तित्व प्रमाणित होता है। भारत में जो आस्तिक और नास्तिक शब्द प्रचलित हैं, उनसे भी यह सिद्ध होता है, कि जो लोग आत्मा, परलोक, पुनर्जन्म जैसो वस्तुओं को स्वीकार नहीं करते थे, उन्हें नास्तिक कह दिया जाता था। भारतीय-दार्शनिक जो आज नयी विचारधारा के हैं, उनका कहना है, कि वेद और उपनिषदों के युग में भी भौतिकवादी विचार-धारा ने अपनी स्वतन्त्र प्रतिष्ठा की। वैदिक-युग से लेकर आज तक की विचार-धारा में भी भौतिकवादी विचार-धारा विलुप्त नहीं हो सकी । भौतिकवादी विचारधारा के भावि विकास की पृष्ठभूमि क्या होगी, यह कह सकना सरल नहीं होगा । परन्तु यह कहने में जरा भी सन्देह नहीं है कि, भौतिकवादी विचारधारा प्राचीन युग से आज तक चली आ रही है, और आज के विज्ञान ने इसी की खोज, इसी की शोध और इसी का अनुसन्धान किया है। आज तक भौतिकवाद की जो खोज हुई है, वह आश्चर्य-जनक रही है। शून्यवाद और विज्ञानवाद :
भारतीय-दर्शनों में विज्ञानवाद और शून्यवाद की चर्चा बहुत आती है। अन्य भारतीय-दार्शनिकों ने बौद्धों के इस विज्ञानवाद और और शून्यवाद का जोरदार खण्डन किया है। बौद्धों ने भी शून्यवाद और विज्ञानवाद के मण्डन पर अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगा दी थी। वास्तव में बौद्ध-दर्शन की चरम परिणति अथवा उसका अन्तिम फल शून्यवाद और विज्ञानवाद ही है । इस विज्ञानवाद और शून्यवाद ने भारतीय-चेतना को एक समय झकझोर दिया था । आचार्य नागार्जुन का दार्शनिक दृष्टिकोण शून्यवाद के नाम से प्रसिद्ध है । शून्यवाद दार्शनिक जगत का प्रभावशाली एवं महत्त्वपूर्ण सिद्धांत माना गया है। नागार्जुन ने कहा-"शून्य एव धर्मः।" शून्य के अतिरिक्त अन्य कोई धर्म नहीं हो सकता। शून्य के परिचायक पंचविध धर्मों (वस्तु, विषय, अर्थ, पदार्थ और प्रमेय) का विस्तृत निरूपण आचार्य नागार्जुन ने माध्यमिक कारिका में किया है। नागार्जुन का परम-तत्त्व अष्ट-निरोधक है। अष्ट-निषेधयुक्त अर्थात् अविरोध, अनुत्पाद, अनुच्छेद, अशाश्वत, अनेकार्थ, अनागम, निर्गम और अनानार्थ है। किन्तु यह सत्तात्मक है। इस प्रकार का सत्तात्मक शून्य जो स्वयं में कल्पनातीत अशब्द, अनक्षर एवं अगोचर है । नागार्जुन के मतानुसार समस्त प्रतीत्य-समुत्पन्न पदार्थों की स्वभावहीनता ही पारमार्थिक है । उक्त पंचविध धर्मों की निःस्वाभाविकता १ भारतीय दर्शन-वाचस्पति गैरोला, पृ. १७७ ।
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