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________________ भारतीय-दर्शन के विशेष सिद्धान्त ८७ वाद की मान्यता को पुष्ट करने में अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगा दी थी। आज जिस रूप में जड़वाद अथवा भौतिकवाद विकास कर रहा है, भविष्य में उसके क्या परिणाम होंगे यह नहीं कहा जा सकता। पर यह कहा जा सकता है, कि आज का भौतिकवादी-विज्ञान प्रकृति की शक्तियों का अथवा जड़वाद के तथ्यों का जो अध्ययन कर रहा है, उसी का परिणाम है रेडियो, टेलीविजन, वायुयान और आज का नवीन परमाणुवाद । जड़वाद और अन्य दर्शन : भारत के अन्य दार्शनिकों ने जड़वाद को स्वीकार न किया हो, यह नहीं कहा जा सकता । आत्मवादी दार्शनिकों ने जड़वाद का इसी अर्थ में खण्डन किया है, कि वह जड़ से अतिरिक्त चेतन को स्वीकार नहीं करता। आत्मवादी-दार्शनिक जड़वाद और भौतिकवाद को स्वीकार करते हैं, उससे इन्कार नहीं किया जा सकता, क्योंकि आत्मवादियों का आत्मा आखिर जड़ शरीर में तो रहना ही है। जब तक संसार अवस्था है, तब तक जड़ शरीर के साथ चेतन आत्मा का सम्बन्ध रहना ही है। फिर इस प्रत्यक्ष देह से आत्मवादी भी कैसे इन्कार कर सकता है ? अतः आत्मवादी दार्शनिकों को भी जड़वाद अथवा भौतिकवाद स्वीकार करना ही पड़ता है। जो शरीर आत्मा का आश्रय है, उसकी सत्यता से आँख बन्द करना आसान काम नहीं था । परन्तु अध्यात्मवादी दार्शनिकों ने उस जड़वाद की विभिन्न रूपों में व्याख्या करके स्वीकृति प्रदान की है। जैन-दर्शन में जड़तत्त्व को पुद्गल कहा गया। बुद्ध भी पुद्गल अथवा द्रव्य कहता है। सांख्य-दर्शन में उसे प्रकृति कहा गया। कुछ भी क्यों न कहा गया हो, पर जड़ तत्व की स्वीकृति अध्यात्मवादी दार्शनिकों ने दी है, और उसकी अपने ढंग से व्याख्या की है। उपनिषदों में इस प्रकार के विचार उपलब्ध होते हैं, जो जड़वाद का समर्थन करते हैं। बुद्ध और महावीर के युग में इस विचार के अनेक दार्शनिक थे, जो जड़वाद का समर्थन करते थे। भगवान महावीर ने सूत्रकृतांग सूत्र में स्वमत और परमत का अथवा स्वसमय और परसमय का जो उपदेश दिया है, उसमें कहा गया है, कि उस युग में ५६३ मत प्रचलित थे। उसमें भूतवादी और चार्वाक को एक विचारधारा थो । बुद्ध ने ब्रह्मजाल-सुत्त में अपने युग के ६२ अन्य दार्शनिकों का और उनके मतों का वर्णन किया है । महाभारत और गीता में भी इस प्रकार के सूक्ष्म विचार उपलब्ध होते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001339
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1992
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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