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पाश्चात्य दर्शन की पृष्ठभूमि १४५ उस तत्त्व को जीवन में कैसे उतारा जाता है, इसके लिए आचार-मीमांसा की भी आवश्यकता होती है। भारतीय दर्शनों की यह परम्परा रही है कि जब किसी भी दर्शन पर विचार किया जाता है, तब उसकी तत्त्व-मीमांसा, ज्ञान-मीमांसा और आचार-मीमांसा का ही विश्लेषण एवं संश्लेषण किया जाता है । किन्तु पाश्चात्य दर्शन को स्थिति इससे भिन्न है। उसमें आचार के लिए जरा भी स्थान नहीं है। और तत्त्व-मीमांसा अधिक विकसित नहीं बन पाई । उनका एक मात्र बल ज्ञान-मीमांसा पर ही केन्द्रित रहा है । ग्रीक और भारतीय तत्व-चिन्तन :
सामान्य रूप से यह माना जाता रहा है, कि ग्रीक और भारतीय तत्त्व-चिन्तन की ये दो धाराएँ अत्यन्त प्राचीन हैं । कुछ विद्वान एक लम्बे समय से इन दोनों विचारधाराओं के परस्पर सम्बन्ध का विचार करते रहे हैं । यह प्रश्न उठाने वाले पाश्चात्य विद्वान ही हैं । और इसका उत्तर सर्वप्रथम उन्हीं की ओर से दिया गया है। बाद में कुछ भारतीय विद्वानों ने भी उधर अपना ध्यान दिया। और ग्रीक एवं भारतीय तत्त्व का परस्पर क्या सम्बन्ध है, इस सम्बन्ध में विचार-चर्चा प्रारम्भ की । कुछ जर्मन और दूसरे विद्वान अपने तुलनात्मक अध्ययन के बल पर यह मानते थे, कि ग्रीक तत्त्व-चिन्तन का भारतीय तत्त्व-चिन्तन पर प्रभाव पड़ा है। दूसरी ओर गाय जैसे विद्वान यही मानते रहे हैं कि भारतीय तत्त्व-चिन्तन का ग्रीक तत्त्व-चिन्तन पर प्रभाव पड़ा है । मैक्स मूलर ने इस सम्बन्ध में जो सोचा है, वह यह है कि किसी एक विचारधारा का दूसरी विचारधारा पर प्रभाव पड़ा हो, इस प्रकार का कोई पुष्ट प्रमाण नहीं है। फिर भी यह सत्य है कि ग्रीक और भारतीय तत्त्व-चिन्तन में कुछ साम्यता अवश्य है। इस साम्यता के आधार पर यह कहना है कि एक दूसरे का प्रभाव एक दूसरे पर पड़ा है, उचित नहीं कहा जा सकता। डा० राधाकृष्णन ने भी इस सम्बन्ध में अपना विचार व्यक्त किया है । उनका मन्तव्य है कि ग्रीक तत्त्वचिन्तन को अनेक आध्यात्मिक एवं संयम-प्रधान जीवन की बातों पर भारतीय तत्व-चिन्तन का और उनके संयमी जीवन का स्पष्ट ही प्रभाव पड़ा है।' इस प्रकार तत्त्व-चिन्तन को लेकर विद्वानों में परस्पर विचार-भेद
१ भारतीय तत्त्व-विद्या, पृ० १५-१६
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