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________________ १४६ अध्यात्म प्रवचन : भाग तृतीय तस्व-शान और विज्ञान : विज्ञान और तत्त्व-ज्ञान में क्या भेद है ? इस प्रश्न के उत्तर के पूर्व हमें विज्ञान और तत्त्व-ज्ञान को समझना पड़ेगा। विज्ञान के स्वरूप का प्रतिपादन करते हुए कहा गया है, कि भौतिक विज्ञान प्रकृति के रूपों और उसकी क्रियाओं का अध्ययन करता है । प्रकृति की अभिव्यक्ति तीन रूपों में होती है-ठोस, तरल और गैस । ठोस पदार्थ के अणु एक-दूसरे के निकट रहना चाहते हैं, यही कारण है, कि ठोस पदार्थ का विस्तार और आकार स्थिर होते हैं । जैसे-मैं किसी पुस्तक को देखता हूँ, तो पुस्तक का विस्तार और आकार स्थिर रूप में रहता है। तरल पदार्थ के अणुओं में इतना घनिष्ठ सम्बन्ध नहीं होता, वे सीमामों के अन्दर अपने स्थान को बदल सकते हैं । यही कारण है, कि उसका विस्तार तो स्थिर होता है पर आकार स्थिर नहीं होता । जैसे-मेरे सामने ग्लास में पानी रखा है । अभी वह ग्लास के आकार में है, और दूसरे पात्र में डाल देने से उसका दूसरा आकार बन जाता है। गैस के अणु एक-दूसरे से जितनी दूर जा सके, जाना चाहते हैं । यही कारण है, कि उसका विस्तार और आकार निश्चित नहीं होता । प्रकृति की क्रिया गति के रूप में होती है । भौतिक-विज्ञान सामान्य प्रकृति का अध्ययन करता है। वह प्रकृति के विविध गुणों की ओर ध्यान नहीं देता । रसायन-विद्या इस भेद की ओर विशेष ध्यान देती है। उसका कार्य प्रकृति के संयोग एवं वियोग का अध्ययन करना है। हाईड्रोजन और आक्सीजन विशेष मात्रा में मिलें, तो जल प्रकट हो जाता है, जिसके गुण उन दोनों के गुणों से भिन्न होते हैं। प्राणी-विद्या जीवन के विविध रूपों का अध्ययन करती है । इस प्रकार विज्ञान के अनेक रूप हैं।' तत्त्व-ज्ञान का क्षेत्र विज्ञान से भिन्न भी है, और व्यापक भी । इस के क्षेत्र के बाहर कुछ भी नहीं। विज्ञान की प्रत्येक शाखा सत्ता के किसी एक अंश का अध्ययन करती है, जबकि तत्त्व-ज्ञान का विषय समग्र-सत्ता है । इसके विस्तार और आकार निःसीम है। समग्र विश्व इसके विवेचन का विषय है। यही कारण है, कि तत्त्व-ज्ञान विज्ञान से अलग पड़ जाता है । प्रकृति-विज्ञान तथ्य की खोज को अपने उद्देश्य में प्रथम स्थान देता है, जबकि तत्त्व-ज्ञान भौतिक तत्त्वों को अपने विवेचन का विषय बनाता है। भौतिक-विज्ञान प्रकृति और उसकी गति के विषय में खोज करता १ तत्त्व-ज्ञान, पृष्ठ ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001339
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1992
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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