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________________ पाश्चात्य दर्शन की पृष्ठभूमि १३३ परिभ्रमण करते हुए देखता है । पर सूर्य न तो छोटा है, और न वह पृथ्वी का परिभ्रमण ही करता है । पानी में डूबी हुई छड़ी पानी की सतह के पास टेढ़ी दीख पड़ती है, जबकि वह वास्तव में सीधी होती है। सिनेमा के पर्दे पर चित्र यथार्थ और सजीव प्रतीत होते हैं, और इसी प्रकार स्वप्न में हम जो कुछ देखते हैं, उसकी यथार्थता में हमें जरा भी सन्देह नहीं होता, किन्तु जागते ही पता लगता है, कि वह सब कुछ मिथ्या था । अतः मनुष्य कभीकभी अपने समग्र अनुभवों के विषय में शंका एवं संशय करते हुए पूछने लगता है-मैं जो कुछ देख रहा हूँ, वह वास्तव में है, अथवा नहीं? स्वप्न के अनुभवों के समान जागृत के अनुभव भी यथार्थ होते हुए मिथ्या नहीं है, इसका क्या प्रमाण है ? संशय की यही भावना दर्शन-शास्त्र को जन्म देती है। नवीन वस्तु जानने की इच्छा : . कुछ दार्शनिकों का कहना है, कि केवल ज्ञान प्राप्त करने की स्वाभाविक इच्छा ही दर्शन-शास्त्र की उत्पत्ति का एकमात्र कारण है। अंग्रेजी भाषा में दर्शन शब्द का अर्थ होता है-Philosophy उनके इस कथन की पुष्टि इस अर्थ में होती है क्योंकि Philos का अर्थ है-प्रीति अथवा अनुराग, और Sophia शब्द का अर्थ है ज्ञान । इन दोनों यूनानी शब्दों से Philosophy शब्द की उत्पत्ति हुई है। इसलिए इसका अर्थ है-ज्ञान की प्रीति अथवा विद्या का प्रेम । अतः ज्ञान एवं विद्या प्राप्त करने की तीव्र इच्छा दर्शन-शास्त्र को जन्म देती है। क्योंकि मनुष्य स्वभाव से ही ज्ञान का प्रेमी है, अतः नवीन वस्तु का ज्ञान करना उसको सहज प्रवृत्ति है । ब्राउनिंग ने कहा है "A spark disturbs our clod, Nearer we held of god" ज्ञान की चिनगारी मनुष्य के अन्दर निरन्तर सुलगती रहती है, और इसीलिए वह अन्य प्राणियों से भिन्न और ईश्वर के अधिक निकट है। इस प्रकार किसी भी नूतन वस्तु के जानने की सहज वृत्ति में से ही दर्शनशास्त्र का जन्म पाश्चात्य-दार्शनिकों ने स्वीकार किया है। असन्तोष की भावना : कुछ पाश्चात्य-दार्शनिकों की यह मान्यता है, कि विस्मय की १ पाश्चात्य-दर्शन-दर्पण, पृष्ठ २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001339
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1992
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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