________________
१२६ अध्यात्म प्रवचन : भाग तृतीय
दर्शन-शास्त्र समाज, सभ्यता और संस्कृति की अमूल्य निधि माना गया है। किसी भी देश की सभ्यता और संस्कृति का वास्तविक परिचय पाने के लिए उसकी दार्शनिक विचार-धारा का ज्ञान आवश्यक होता है । पाश्चात्य दर्शन में पश्चिम के अनेक देशों की विविध विचार-धाराओं का संगम एवं समन्वय हुआ है। प्रधानतया उसमें तीन धाराएँ हैं-ग्रीक, ईसाई और आधुनिक दर्शन । इस त्रिवेणी का संगम ही पाश्चात्य दर्शन कहा जाता है, जिसमें विभिन्न युगों की विचार-धाराएं एकत्रित हई हैं। वास्तव में पाश्चात्य दर्शन का प्रारम्भ ग्रीक विचारक थीली से होता है ।
और जर्मन दार्शनिक हेगेल में जाकर वह परिसमाप्त हो जाता है । हेगेल के बाद भी योरुप में अनेक दार्शनिक हुए हैं, किन्तु हेगेल ने दर्शन-शास्त्र को चरम सीमा तक पहुँचाने का श्रेय प्राप्त किया था। भारतीय दर्शन में जो स्थिति बौद्धों के शून्यवाद और विज्ञानवाद की है तथा वेदान्त परम्परा में अद्वैत वेदान्त की है, वही स्थिति जर्मनी में हेगेल के दर्शन की है। योरुप का दर्शन वहां परिसमाप्त हो जाता है । हेगेल के बाद में होने वाले दार्शनिकों ने नया विचार या नयी कल्पना न दी हो, यह तो नहीं कहा जा सकता । पर यह कहा जा सकता है, कि जो सर्वांगीणता काण्ट और हेगेल में है, वह योरुप के अन्य किसी दार्शनिक में दृष्टिगोचर नहीं होती। वैसे तो प्रत्येक युग में कोई न कोई महान दार्शनिक होता रहा है, जैसे ग्रीक दर्शन का चरम विकास हम अरस्तू में देखते हैं । योरुप के दर्शन का चरम विकास बर्कले और ह्य म में देखा जाता है। उसी प्रकार जर्मन दर्शन का चरम विकास काण्ट और हेगेल में देखा जाता है। इस प्रकार पाश्चात्य दर्शन के प्रमुख वाद व्यक्तियों के नाम से नहीं, बल्कि सिद्धान्तवाद के आधार पर वहां प्रकट हुए थे । इन पाश्चात्य विचार धाराओं में कहीं पर संगति नजर आती है, और कहीं पर विसंगति भी नजर आती है। शायद इसका अर्थ इतना हो है, कि योरुप का प्रत्येक दार्शनिक अपने में स्वतन्त्र रहा है, भारतीय दार्शनिकों की तरह वह किसी परम्परा में आबद्ध होकर नहीं चला। पूर्वी और पश्चिमी दर्शन :
दर्शन-शास्त्र के समालोचक लोग यह कहा करते हैं, कि भारतीय दर्शन अध्यात्मवादी दर्शन है और पाश्चात्य दर्शन भौतिकवादी दर्शन है। उनका यह कथन किस तथ्य पर आधारित है यह तो वे ही जानें, पर पश्चिमी दर्शन को भौतिकवादी दर्शन कहना तर्कसंगत एवं बुद्धिसंगत नहीं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org