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पाश्चात्य दर्शन की पृष्ठ-भूमि
पाश्चात्य दर्शन उतना ही प्राचीन है, जितना कि भारतीय दर्शन । यूनानी दर्शन उसी युग का दर्शन है, जिस युग में यहाँ पर उपनिषद् दर्शन की रचना हो रही थी। पाश्चात्य दर्शन में यूनानी दर्शन सर्वाधिक प्राचीन है और अमेरिकी दर्शन सबसे आधुनिक दर्शन है । यूनान से लेकर अमेरिका तक पाश्चात्य दर्शन ने जिस प्रकार अपना विकास किया है, यह एक अनुसंधान का विषय हो सकता है, किन्तु इसमें जरा भी सन्देह नहीं, कि पाश्चात्य दर्शन का जन्म यूनान की धरती पर हुआ था। फिर उसका विकास रोम में हुआ। इंग्लैंड और फ्रांस में उसने अधिक विकास किया और जर्मनी में जाकर वह अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया। अमरीका में जो आज दर्शन का विकास हो रहा है, वह एक अपनी नयी पद्धति का ही है । पाश्चात्य दर्शन को समझने के लिए उसके समालोचक यह कहा करते हैं, कि यूनानी दर्शन वस्तुवादी दर्शन है । डेकाटं से लाइबनोज तक जो योरुप का दर्शन रहा है, वह भी वस्तुवादी दर्शन था। लॉक से ह्य म तक का दर्शन अनुभववादी दर्शन रहा। कांट से हेगेल तक का दर्शन बुद्धिवादी दर्शन था। और अमरीका में वह व्यवहारवादी बन गया। इस प्रकार पाश्चात्य दर्शन ने जो प्रगति और विकास किया है, उसकी एक रूप-रेखा यहाँ प्रस्तुत की जा रही है। समग्र पाश्चात्य दर्शन का विस्तृत परिचय देना यहाँ शक्य नहीं है, फिर भी उसकी मुख्य धाराओं का और मुख्य सिद्धान्त एवं वादों का परिचय दिया जाएगा, जिससे कि पाठक यह समझ सकें, कि पाश्चात्य दर्शन का विकास किस शैली से होता रहा है । पाश्चात्य दर्शन को वस्तुतः दर्शन कहा जाए कि नहीं, इस प्रकार का विवाद भी कभी कभी उठा करता है। परन्तु हमें विचार करना है, कि वस्तुस्थिति क्या है और किस प्रकार पाश्चात्य दर्शन अपने विकास-क्षेत्र में अग्रसर होता रहा है। जिस प्रकार भारतीय दर्शन की अनेक धाराएं हैं, फिर वे अपने में पूर्णतः स्वतन्त्र हैं । स्वतन्त्रता का अर्थ यह नहीं है कि उसमें विचार साम्य न हो।
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