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अध्यात्म प्रवचन : भाग तृतीय
जगत प्रकृति का परिणाम है, जो कि उसका मूल कारण है । समस्त भौतिक कार्यों का उपादान कारण प्रकृति है । वह कूटस्थ और नित्य पुरुष का परिणाम नहीं हो सकता । संसार प्रकृति में से ही उत्पन्न होता है, और फिर प्रकृति में ही विलीन हो जाता है । स्वगं तिरोभाव से आविर्भाव, अविविक्त से विविक्त, अविशेष से विशेष, अलिंग से लिंग और युत सिद्ध से अयुत सिद्ध में पहुँचने की प्रक्रिया है । यह गुणों का उनके विचारों में बदलना है । गुण न उत्पन्न होते हैं और न नष्ट । प्रकृति का परिणाम बुद्धि अथवा महत्त्व में होता है । महत्त्व का अहंकार में परिणाम होता है । अहंकार का एकादश इन्द्रियों और पांच तन्मात्राओं में परिणाम होता है। पांच तन्मात्राओं में से पांच महाभूतों की उत्पत्ति होती है। इस प्रकार एक सृष्टि की रचना होतो है, और अन्त में यह सब कुछ सिमट कर प्रकृति में ही विलीन हो जाता है । विज्ञान भिक्षु ने विश्व परिणाम का वर्णन कुछ भिन्न प्रकार से किया है । विज्ञान- भिक्षु के अनुसार प्रकृति का महत्व और महत्त्व का अहंकार में परिणाम होता है । अहंकार एक और एकादश इन्द्रियों में और दूसरी ओर पांच तन्मात्राओं में परिणाम होता है । पांच तन्मात्राओं से पांच स्थूल भूतों की उत्पत्ति होती है । इस प्रकार सांख्य दर्शन के अनुसार जो भी कुछ कार्य है, वह सब प्रकृति का ही परिणाम है |
योग-दर्शन की समाधि :
योग-दर्शन एक साधना प्रधान दर्शन माना जाता है । इसमें ज्ञान के सिद्धान्तों की इतनी सूक्ष्म मीमांसा नहीं है, जितनी क्रियात्मक योग की 1 योग के आठ अंग माने जाते हैं- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि । पतञ्जलि ने अपने योग सूत्रों में यांग को चित्तवृत्ति निरोध कहा है । जवकि व्यास ने समाधि को योग कहा है । अतः योग के दो अर्थ हैं - चित्तवृत्तिनिरोध और समाधि । समाधि चित्त का सार्वभौम धर्म है । अभ्यास और वैराग्य से सभी योग की सिद्धि कर सकते हैं । क्षिप्त, मूढ़ और विक्षिप्त - ये तीन प्रकार के चित्त योग के योग्य नहीं है । एकाग्र और निरुद्ध ये दो चित्त ही योग साधना के योग्य हैं। योग अंगों के अभ्यास से ही योग की सिद्धि की जा सकती है। जाने पर उसके परिणामस्वरूप दूर-दर्शन, दूर-श्रवण, परचित्त प्रवेश आदि सिद्धियों की प्राप्ति होती है। योग-दर्शन में कहा गया है, कि यदि योगी इन सिद्धियों के मोह में पड़ गया, तो वह योग से भ्रष्ट हो जाता है । यदि वह उनकी उपेक्षा करता है, तो वह सदा के लिए योग
योग के सिद्ध हो
परचित्त ज्ञान और
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