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________________ ६८ अध्यात्म-प्रवचन : भाग तृतीय न करे, उसकी उपेक्षा न करे, बल्कि उनके अस्तित्व को स्वीकार करे । जो दूसरे का निराकरण करता है, और अपना ही अधिकार जमाता है, वह कलहकारी कपूत की भांति दुर्नय कहा जाता है। इस प्रकार जैन-दर्शन में नयों का बहुत सुन्दर विश्लेषण किया गया है, और इन नयों के आधार पर ही अनेकान्तवाद का भव्य प्रासाद खड़ा किया गया है । नयों के सम्बन्ध में अन्य प्रकार से भी जैन-दार्शनिक ग्रन्थों में विचार किया गया है, जिसे समझना आवश्यक है। द्रव्याथिक और पर्यायाथिक : द्रव्याथिक और पर्यायाथिक इस प्रकार से भी नयों का विभाजन किया गया है । वस्तु में स्वरूपतः अभेद है, वह अखण्ड है, और अपने में एक मौलिक है। उसे अनेक गुण एवं पर्याय और धर्मों के द्वारा अनेक रूप में ग्रहण किया जाता है । दो प्रकार की दृष्टि होती है-अभेदगामिनी और भेदगामिनी। अभेद-ग्राहिणी-दृष्टि द्रव्य-दृष्टि कही जाती है, और भेदग्राहिणी-दृष्टि पर्याय-दृष्टि कही जाती है । द्रव्य को मुख्य रूप से ग्रहण करने वाला नय द्रव्याथिक कहा जाता है। वस्तु भेदाभेदात्मक होती है। अभेद का अर्थ है-सामान्य और भेद का अर्थ है-विशेष । वस्तुओं में अभेद और भेद की कल्पना के दो प्रकार हैं- एक तो एक अभेद मौलिक द्रव्य में अपनी द्रव्य-शक्ति के कारण विवक्षित अभेद जो द्रव्य और ऊर्ध्वता सामान्य कहा जाता है। यह अपनी कालक्रम से होने वाली ऋमिक पर्यायों में ऊपर से नीचे तक व्याप्त रहने के कारण ऊर्ध्वतासामान्य कहा जाता है। यह जिस प्रकार अपनी क्रमिक पर्यायों को व्याप्त करता है, उसी प्रकार सहभागी गुण और धर्मों को भी व्याप्त करता है। दूसरी अभेद कल्पना विभिन्न सत्ता के अनेक द्रव्यों में संग्रह की दृष्टि से की जाती है । यह कल्पना शब्द-व्यवहार के लिए सादृश्य की अपेक्षा से की जाती है। जैसे अनेक स्वतन्त्र सत्ता वाले मनुष्यों में सादृश्य मूलक मनुष्य जाति की अपेक्षा मनुष्यत्व सामान्य की कल्पना तिर्यक-सामान्य कहा जाता है । यह अनेक द्रव्यों में तिरछा चलता है । एक द्रव्य की पर्यायों में होने वाला भेद कल्पना पर्याय विशेष कहा जाता है, तथा विभिन्न द्रव्यों में प्रतीत होने वाला भेद व्यतिरेक विशेष कहा जाता है। इस प्रकार दोनों प्रकार के अभेदों को विषय करने वाली द्रव्य दृष्टि है, और भेदों को विषय करने वाली दृष्टि १ जैन-दर्शन, पृ. ४७७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001339
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1992
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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