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________________ ६२ अध्यात्म-प्रवचन आपने जैन इतिहास की वह जीवन-गाथा सुनी होगी, जिसमें कहा गया है, कि किसी राजा ने एक मुनि के शरीर की चमड़ी को उसकी जीवित अवस्था में ही उतरवा डाला था। जैन इतिहास में उस दिव्य ज्योति का परिचय स्कन्दक मुनि के नाम से मिलता है। स्कन्दक मुनि को किस कारण पकड़ा गया और किस कारण वहाँ के राजा ने उनके शरीर की चमड़ी को उतारने का आदेश दिया, इस सम्बन्ध में मुझे यहाँ कुछ कह कर कहानी को लम्बा नहीं करना है। किन्तु मैं आपको यह बतला रहा हूँ कि जिस समय जल्लाद स्कन्दक मुनि के शरीर की खाल को उतार रहे थे, उस समय स्कन्दक मुनि के मन में क्या विचार थे और वे क्या सोच रहे थे? __स्कन्दक मुनि अपने विवेक और निर्मल ज्ञान धारा में तल्लीन होकर विचार कर रहे थे, कि इन जल्लादों का क्या दोष है? यह तो राजा के आदेश का पालन कर रहे हैं। अपने स्वामी के आदेश का पालन करना ही इनका कर्तव्य है। राजा का भी क्या दोष है ? निश्चय ही यह तो मेरे अपने कर्मों का ही दोष है। मैंने अपने पिछले जन्म में किसी प्रकार का भयंकर अशुभ कर्म किया होगा, उसी का यह फल आज मुझे मिल रहा है। महान् आश्चर्य है, कि शरीर से चमड़ी जिस समय उतारी जा रही थी, उस दारुण और भयंकर दुःख की वेला में भी स्कन्दक मुनि के मन में न चमड़ी उतारने वाले जल्लाद के प्रति द्वेष था और न चमड़ी उतारने का आदेश देने वाले राजा के प्रति ही। ____ आप यह मत समझिए, कि उस समय स्कन्दक मुनि को वेदना या पीड़ा नहीं हो रही थी।शरीर में एक छोटी सी सुई चुभने पर भी जब पीड़ा होती है और पैर में एक साधारण सा काँटा लग जाने पर भी जब व्यथा होती है, तब यह कैसे माना जा सकता है, कि शरीर की खाल उतारते समय स्कन्दक मुनि को वेदना, पीड़ा अथवा व्यथा नहीं थी। बात यह है कि शरीर की पीड़ा और व्यथा तो भयंकर थी, किन्तु आत्मा के परिबोध ने उस वेदना और व्यथा को उनके मन में प्रवेश नहीं करने दिया। जब साधक आत्मा और पुद्गल में भेद-विज्ञान कर लेता है और यह निश्चय कर लेता है, कि आत्मा भिन्न है और यह शरीर भिन्न है, तब इस भेद-विज्ञान के आधार पर भयंकर से भयंकर कष्ट को भी सहन करने.की अद्भुत क्षमता उसमें आ जाती है। स्कन्दक मुनि ने अपने शरीर पर से अपना उपयोग हटाकर उसे आत्मा में केन्द्रित कर दिया था। यही कारण है, कि जल्लाद उनके शरीर से खाल उतारता रहा और वे आत्मलीन रहे। इतना ही नहीं, स्कन्दक मुनि ने खाल उतारते समय शान्त स्वर से जल्लाद से कहा-"तुझे अपने इस कार्य को सम्पन्न करने में किसी प्रकार की असुविधा और बाधा न होनी चाहिए, इसके लिए यदि करवट बदलने की आवश्यकता हो तो मुझे बतला देना, मैं वैसा ही कर लूँगा।" कल्पना कीजिए, जब किसी मृत शरीर की खाल उतरती देखने से भी मन में भय होता है तब जीवित शरीर पर से खाल उतारने के इस दारुण दृश्य को देखने वालों के मन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001338
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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