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________________ ज्ञाता, ज्ञान और ज्ञेय ५३ यहाँ पर यह प्रश्न उठाया जा सकता है, कि नाम निक्षेप में और स्थापना निक्षेप में क्या अन्तर है? क्योंकि नाम-निक्षेप में किसी व्यक्ति का कुछ भी नाम रख दिया जाता है और स्थापना निक्षेप में भी मूर्ति अथवा चित्र आदि में नाम रख दिया जाता है ? इसके समाधान में कहा गया है कि नाम और स्थापना में इतना ही भेद है, कि नाम-निक्षेप में आदर और अनादर-बुद्धि नहीं रहती, जबकि स्थापना निक्षेप में आदर और अनादर बुद्धि की जा सकती है। कल्पना कीजिए, एक व्यक्ति किसी नदी में से गोल पत्थर उठा लाया और उसने उसमें शालिग्राम की स्थापना करली, उस स्थिति में वह व्यक्ति उसमें आदर-बुद्धि भी रखता है। इस प्रकार आपने देखा निक्षेप-सिद्धान्त के द्वारा किस प्रकार जीवन की समस्याओं का समाधान किया जाता है। शास्त्रीय रहस्य को समझने के लिए ही निक्षेप की आवश्यकता नहीं है, बल्कि लोकव्यवहार की उलझनों को सुलझाने के लिए भी निक्षेप की आवश्यकता रहती है। अतः निक्षेप का परिज्ञान परम आवश्यक है। एक प्रश्न यह भी उठाया जाता है, कि नय और निक्षेप में क्या भेद है? इसके उत्तर में कहा गया है कि नय और निक्षेप में विषय और विषयी-भाव सम्बन्ध है। नय ज्ञानात्मक है और निक्षेप ज्ञेयात्मक। निक्षेप को जानने वाला नय है। शब्द और अर्थ में जो वाच्य-वाचक सम्बन्ध है, उसके स्थापना की क्रिया का नाम निक्षेप है और वह नय का विषय है, तथा नय उसका विषयी है। आदि के तीन निक्षेप द्रव्यार्थिक नय के विषय हैं और अन्तिम भाव निक्षेप पर्यायार्थिक नय का विषय है। यहाँ पर मैंने संक्षेप में ही निक्षेप का वर्णन किया है, वैसे निक्षेप का विषय बहुत ही गम्भीर है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001338
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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