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५२ अध्यात्म-प्रवचन अर्थ है, वह अपेक्षित नहीं है, बल्कि एक संज्ञामात्र ही है। नामनिक्षेप में जाति, गुण, द्रव्य और क्रिया की आवश्यकता नहीं रहती है, क्योंकि यह नाम तो केवल लोक-व्यवहार चलाने के लिए ही होता है। नामकरण संकेत मात्र से किया जाता है। यदि नाम के अनुसार उसमें गुण भी हों, तब वह नामनिक्षेप न कहलाकर भावनिक्षेप कहलाएगा। भाव-निक्षेप उसी को कहा जाता है, जिसमें तदनुकूल गुण भी विद्यमान हों।
किसी वस्तु की किसी अन्य वस्तु में यह परिकल्पना करना कि यह वह है, स्थापना निक्षेप कहा जाता है। मेरे कहने का अभिप्राय यह है, कि जो अर्थ तद्प नहीं है, उसे तद्रूप मान लेना ही स्थापना-निक्षेप है। स्थापना-निक्षेप के दो भेद हैं-तदाकार-स्थापना
और अतदाकार-स्थापना। किसी मूर्ति अथवा किसी चित्र में व्यक्ति के आकारानुरूप स्थापना करना, तदाकार-स्थापना है, तथा शतरंज आदि के मोहरों में अश्व, गज आदि की जो अपने आकार से रहित कल्पना की आती है, उसे अतदाकार स्थापना कहा जाता है। यहाँ पर यह बात ध्यान में रखनी चाहिए, कि नाम और स्थापना दोनों वास्तविक अर्थ से शून्य होते हैं।
अतीत अवस्था, अनागत अवस्था और अनुयोग-दशा-ये तीनों विवक्षित क्रिया में परिणत नहीं होते। इसी कारण इन्हें द्रव्य-निक्षेप कहा जाता है। जैसे जब कोई कहता है, कि 'राजा तो मेरे हृदय में है।' तब उसका अर्थ होता है- राजा का ज्ञान मेरे हृदय में है। क्योंकि शरीरधारी राजा का कभी किसी के हृदय में रहना सम्भव नहीं है। यह अनुयोग दशा है। द्रव्य-निक्षेप के अन्य दो उदाहरण हैं, कि जो पहले कभी राजा रहा है, किन्तु वर्तमान में राजा नहीं है, उसे राजा कहना अतीत द्रव्य निक्षेप है। वर्तमान में जो राजा नहीं है, किन्तु भविष्य में जो राजा बनेगा उसे वर्तमान में राजा कहना, अनागत द्रव्य निक्षेप है। उक्त द्रव्य-निक्षेप का अर्थ है-जो अवस्था अतीत काल में हो चुकी हो अथवा भविष्य काल में होने वाली हो, उसका वर्तमान में कथन करना।
वर्तमान पर्याय-सहित द्रव्य को भाव-निक्षेप कहते हैं। जैसे राज्य सिंहासन पर स्थित व्यक्ति को राजा कहना। भाव-निक्षेप की दृष्टि में राजा वही व्यक्ति हो सकता है, जो वर्तमान में राज्य कर रहा हो। इसके विपरीत जो व्यक्ति पहले राज्य कर चुका है अथवा भविष्य में राज्य करेगा, किन्तु वर्तमान में वह राज्य नहीं कर रहा है, तो भावनिक्षेप उसे राजा नहीं मानता। निक्षेप के अनुसार राजा शब्द के चार अर्थ हुए-नाम-राजा, स्थापना-राजा, द्रव्य-राजा और भाव-राजा।
किसी व्यक्ति का नाम राजा रख देना नामराजा है। किसी राजा के चित्र को राजा कहना अथवा किसी भी पदार्थ में यह राजा है इस प्रकार की परिकल्पना करना, यह स्थापना राजा है। द्रव्य राजा उसे कहा जाता है, जो वर्तमान में तो राजा नहीं है, किन्तु अतीत में रह चुका है अथवा भविष्य में राजा बनेगा। भाव-राजा वह है, जो वर्तमान में राज्य पद पर स्थित है और राज्य का संचालन कर रहा है।
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