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________________ निक्षेप-सिद्धान्त ५१ निपात शब्द वस्तु-वाचक नहीं होते हैं। निक्षेप का सम्बन्ध उसी शब्द से रहता है, जो वस्तु-वाचक होता है। व्याकरण के अनुसार वस्तु-वाचक शब्द नाम ही होता है। अतः उक्त चार प्रकार के शब्दों में से निक्षेप का सम्बन्ध केवल नाम के साथ ही रहता है। निक्षेप-सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक शब्द के कम से कम चार अर्थ अवश्य ही होते हैं। वैसे एक शब्द के अधिक अर्थ भी हो सकते हैं और होते भी हैं, किन्तु यहाँ पर निक्षेप का वर्णन अभीष्ट है, अतः शब्दकोष के अनुसार शब्द का अर्थ ग्रहण न करके यहाँ पर केवल निक्षेप-सिद्धान्त के अनुसार ही शब्द का अर्थ ग्रहण करना है। __ एक बड़ा ही महत्व का प्रश्न यह है, कि निक्षेप के सिद्धान्त का उद्देश्य क्या है और उसका जीवन में क्या उपयोग है? उक्त प्रश्न के समाधान में कहा गया है, कि निक्षेप-सिद्धान्त का प्रयोजन एवं उपयोग यही है, कि अप्रस्तुत अर्थ का निराकरण करके प्रस्तत अर्थ को बतलाना। उदाहरण के लिए, किसी ने कहा कि "गरु तो मेरे हृदय में हैं।" यहाँ पर गुरु शब्द का अर्थ गुरु व्यक्ति का ज्ञान लेना होगा, क्योंकि शरीर-संयुक्त गुरु किसी के हृदय में कैसे रह सकता है ? अतः उक्त वाक्य में गुरु का ज्ञान, यह अर्थ प्रस्तुत है, न कि स्वयं गुरु व्यक्ति। इस आधार पर यह कहा जाता है, निक्षेप का सबसे बड़ा उपयोग यह है, कि वह अप्रस्तुत अर्थ को दूर करके प्रस्तुत अर्थ का ज्ञान हमें करा देता है। निक्षेप की उपयोगिता केवल शास्त्रों में ही नहीं, बल्कि मनुष्य के दैनिक व्यवहार में भी रहती है। बिना निक्षेप के मनुष्य का दैनिक व्यवहार भी सुचारु रूप से चल नहीं सकता है। संसार के जीवों का समग्र व्यवहार पदार्थ के आश्रित रहता है। पदार्थ एक नहीं, अनन्त हैं। उन समग्र पदार्थों का व्यवहार एक साथ नहीं हो सकता। यथावसर प्रयोजन-वशात् अमुक किसी एक पदार्थ का ही व्यवहार होता है, अतः जिस उपयोगी पदार्थ का ज्ञान हम करना चाहते हैं, उसका ज्ञान शब्द के आधार से ही किया जा सकता है। किन्तु किस शब्द का क्या अर्थ है, यह कैसे जाना जाए? वस्तुतः इसी प्रश्न का समाधान निक्षेप-सिद्धान्त है। व्याकरण के अनुसार शब्द और अर्थ परस्पर सापेक्ष होते हैं। शब्द को अर्थ की अपेक्षा रहती है और अर्थ को शब्द की अपेक्षा रहती है। यद्यपि शब्द और अर्थ दोनों स्वतन्त्र पदार्थ हैं, फिर भी उन दोनों में एक प्रकार का सम्बन्ध माना गया है। इस सम्बन्ध को वाच्य-वाचक-सम्बन्ध कहा जाता है। शब्द वाचक है और अर्थ वाच्य है। वाच्य-वाचक-सम्बन्ध का ज्ञान होने पर ही शब्द का उचित प्रयोग किया जा सकता है। इस दृष्टि से निक्षेप का सिद्धान्त एक वह सिद्धान्त है, जिससे शब्द के अर्थ को समझने की कला का परिज्ञान होता है। प्रश्न यह है कि निक्षेप के कितने प्रकार हैं ? इसके उत्तर में इतना कहना ही पर्याप्त होगा कि, किसी भी वस्तु-विन्यास के जितने क्रम हो सकते हैं, उतने ही निक्षेप होते हैं। परन्तु कम से कम चार निक्षेप माने गए हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव। किसी वस्तु का अपनी इच्छा के अनुसार नाम रख देना-नाम-निक्षेप है। जैसे किसी मनुष्य का नाम उसके माता-पिता ने 'महावीर' रख दिया। यहाँ पर महावीर शब्द का जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001338
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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