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जीवन का नियामक शास्त्र : आचार १५३ है। अतः व्यक्ति के सुख का अर्थ है-सामाजिक सुख और सामाजिक सुख का अर्थ हैव्यक्ति का सुख । व्यक्ति और समाज अभिन्न हैं। मानव का चरम लक्ष्य या चरम शुभ सामाजिक शुभ है। __आचारशास्त्र वास्तव में समाजशास्त्र पर आश्रित है। सामाजिक संस्थाओं का इतिहास, रीति-रिवाजों का विकास तथा नैतिक नियमों के विकास का इतिहास समाजशास्त्र में मिलता है। इन्हीं के आधार पर हम मानव-आचरण के आदर्श का विचार करते हैं। यथार्थ का ज्ञान समाजशास्त्र से होता है और आदर्श का आचारशास्त्र से। इसलिए समाजशास्त्र आचारशास्त्र का आधार है। पर वास्तव में समाजशास्त्र स्वयं आचारशास्त्र पर आश्रित है। समाज के नियमों और उसके इतिहास को जानकर ही उसकी प्रगति या पतन का ज्ञान नहीं होता। समाज के उत्थान या पतन का मूल्यांकन किसी मापदण्ड से ही सम्भव है। यह मापदण्ड आचारशास्त्र से ही मिलता है। अतः समाजशास्त्र में सामाजिक विकास या परिवर्तनों का मूल्यांकन आचारशास्त्रों के मापदण्डों के द्वारा होता है।
आचारशास्त्र और समाजशास्त्र की घनिष्ठता के कारण कुछ विचारकों (स्पेंसर, स्टीफन आदि) ने आचारशास्त्र को समाजशास्त्र की एक शाखा माना है। समाजशास्त्र में नैतिक आदर्शों के विकास का अध्ययन होता है, इसीलिए वे ऐसा विचारते हैं। पर आचारशास्त्र में मुख्यतः नैतिक आदर्शों के विकास का अध्ययन नहीं होता, बल्कि उसके स्वरूप की मीमांसा होती है। इसके अतिरिक्त दोनों विज्ञानों में अन्तर भी है।
आचारशास्त्र मानव जीवन के आदर्श से सम्बन्धित है। पर समाजशास्त्र मानव समाज के इतिहास तथा विकास से।
आचारशास्त्र आदर्श निर्देशक विज्ञान है, पर समाजशास्त्र यथार्थ विज्ञान है। किसी समाज या सामाजिक संस्था का विकास कैसे हुआ, इसके क्या नियम हैं, ये प्रश्न समाजशास्त्र के हैं। व्यक्ति या समाज का क्या आदर्श होना चाहिए, ये प्रश्न आचारशास्त्र के हैं। अतः समाजशास्त्र वर्णनात्मक है, आचारशास्त्र आदर्श-निर्देशक।
आचारशास्त्र व्यावहारिक विज्ञान है। इसका सम्बन्ध मनुष्य के दैनिक व्यवहारों से है। यह आचरण कैसा होना चाहिए, इसका ज्ञान देता है। समाजशास्त्र सैद्धान्तिक है। इसमें समाज का सैद्धान्तिक अध्ययन होता है।
समाजशास्त्र में मनुष्य के सामूहिक रूप का अध्ययन होता है। आचारशास्त्र में सामूहिक तथा व्यक्तिगत दोनों रूपों का।
समाजशास्त्र में मानसिक तथ्यों का वस्तुनिष्ठ अध्ययन किया जाता है। जैसेरीति-रिवाजों का, संस्थाओं का। आचारशास्त्र में आत्मनिष्ठ मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन होता है जैसे-इच्छा, प्रयोजन आदि का।
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