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________________ १५४ अध्यात्म-प्रवचन आचारशास्त्र और राजनीतिविज्ञान (Politics) राजनीतिशास्त्र वह विज्ञान है जिसमें राज्य और शासन सम्बन्धी समस्याओं का अध्ययन होता है । किस प्रकार का शासन हो कि सम्पूर्ण मानव-जाति सुख और शान्ति से रहे, यही इसकी समस्या है। कैसा विधान या नियम हो जिससे मानव वर्ग में शान्ति रहे और उसका उत्थान हो, यही प्रश्न है राजनीतिशास्त्र का, इसलिए यह आदर्श-निर्देशक है। आचारशास्त्र का सम्बन्ध भी आचरण के आदर्श से है। इसलिए दोनों विज्ञान आदर्श-निर्देशक हैं। दोनों विज्ञानों का सम्बन्ध मनुष्य के दैनिक जीवन से है। इसलिए दोनों व्यावहारिक हैं। राजनीतिशास्त्र का आधार आचारशास्त्र ही है। किसी भी विधान को न्यायसंगत होने के लिए नैतिक होना आवश्यक है। राज्य के विधान नैतिक सिद्धान्तों के अनुकूल यदि नहीं रहते, तो उनका फल खराब होता है। कोई राज्य अनैतिक नहीं हो सकता। नीति और राज्य के विधान में, आचारशास्त्र और राजनीतिशास्त्र में घनिष्ठ सम्बन्ध है। दोनों शास्त्रों में ऐसी घनिष्ठता के कारण कुछ दार्शनिकों ने राजनीतिशास्त्र को आचारशास्त्र का अंग माना है (प्लेटो और अरस्तू ) । उन्होंने नैतिक नियमों से ही राज्य शासन के विधान का प्रतिपादन किया है। पर कुछ विचारकों ने राजनीतिशास्त्र को आचारशास्त्र से बिल्कुल भिन्न माना है (माइकावेली)। उनके अनुसार राज्य नैतिक नियमों से बँधा नहीं है। शासन के विधान अवसर के अनुसार बनते हैं। यदि किसी राज्य का लक्ष्य उच्च है, तो उसे किसी भी साधन द्वारा प्राप्त करना उचित होता है। झूठ, धोखा इत्यादि जो नैतिक दृष्टि से असंगत हैं, अवसर के अनुसार राजनीतिक दृष्टि से संगत भी हो सकते हैं। कुछ विचारकों ने आचारशास्त्र को राजनीतिशास्त्र का अंग माना है । वे राज्य के नियम को ही नैतिक नियम बतलाते हैं। इनमें हॉब्स और बेन प्रमुख हैं। उपर्युक्त विचार एकांगी हैं। किसी शासन क्रम से यदि नैतिकता को हटा दें तो उसका प्रभाव मनुष्य पर नहीं पड़ता। जो राज्य नैतिक दृष्टि से गिरा हुआ रहता है, उसकी सत्ता अधिक दिनों तक नहीं टिकी रहती, एक न एक दिन उसका लोप हो ही जाता है। नैतिक शक्ति ही सबसे बड़ी शक्ति है। इसलिए राजनीति का आधार आचारशास्त्र ही है । पर इसका यह भी अर्थ नहीं कि दोनों एक हैं। उनमें भेद भी हैं। राजनीतिशास्त्र का सम्बन्ध अधिकतर क्रिया-कलापों के बाह्य रूप से है। मनुष्य के कर्म ऐसे हों कि उनका फल सुखकर हो । आचारशास्त्र का सम्बन्ध अधिकतर मनुष्य की इच्छा, अभिलाषा, आकांक्षा तथा लक्ष्य से है। मनुष्य की अभिलाषा तथा आकांक्षा उच्च होनी चाहिए। राजनीतिक विधान के अनुसार किसी को कष्ट देना एक अपराध है पर आचारशास्त्र के अनुसार किसी को कष्ट देने का विचार भी अपराध है । यद्यपि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001338
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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