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________________ १५२ अध्यात्म-प्रवचन जाये अर्थात् मानव-आचरण का कोई भी आदर्श क्यों न माना जाये । मानव जीवन के लक्ष्य के वास्तविक स्वरूप को जाने बिना मनुष्य के मानसिक स्वरूप को जानना सम्भव नहीं है। पर आचारशास्त्र और मनोविज्ञान में ऐसी घनिष्ठता रहने पर भी दोनों के क्षेत्र और दृष्टिकोण में अन्तर है । मानसिक क्रियाओं के तीन पहलू हैं - ज्ञानात्मक, भावात्मक और क्रियात्मक । मनोविज्ञान सभी का अध्ययन करता है। आचारशास्त्र का सम्बन्ध केवल ऐच्छिक क्रियाओं से ही है । अतः इस दृष्टि से मनोविज्ञान का क्षेत्र आचारशास्त्र के क्षेत्र से अधिक व्यापक है। मनोविज्ञान में ऐच्छिक क्रियाओं का विश्लेषण तथा उनके स्वरूप का अध्ययन होता है। आचार शास्त्र का लक्ष्य है-आचरण के आदर्श का ज्ञान । अतः जहाँ मनोविज्ञान एक यथार्थ विज्ञान है, वहाँ आचारशास्त्र एक आदर्श निर्देशक विज्ञान है। मनोविज्ञान का सम्बन्ध 'है' से है और आचारशास्त्र का 'चाहिए' से । विज्ञान का दृष्टिकोण वस्तुनिष्ठ और आचारशास्त्र का आत्मनिष्ठ माना जाता है। मनोविज्ञान मानसिक तथ्यों का वस्तुओं की भाँति अध्ययन करता है। आचारशास्त्र व्यक्तियों की आन्तरिक मानसिक अवस्थाओं और व्यक्तिगत अनुभूतियों से सम्बन्धित रहता है। आचारशास्त्र में मनोवैज्ञानिक पद्धति से काम लिया जाता है । परन्तु उसकी पूर्ति दार्शनिक पद्धति से होती है। इसमें मनुष्य 'क्या करता है' यह जानकर उसे 'क्या करना चाहिए' की समीक्षा होती है । आचारशास्त्र और समाजशास्त्र (Sociolgy) समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है। इसमें समाज के स्वरूप, नियम तथा विकास का अध्ययन होता है। विभिन्न सामाजिक वर्गों का निर्माण, भिन्न संस्थाएँ, रीति-रिवाज आदि का प्रारम्भ तथा विकास कैसे हुआ यही जानना समाजशास्त्र का लक्ष्य है। आदि काल से वर्तमान रूप में मनुष्य-समाज का कैसे विकास या परिवर्तन हुआ, समाजशास्त्र में इसी का अध्ययन किया जाता है। आचारशास्त्र का सम्बन्ध आचरण से है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। व्यक्ति समाज का अंग है। मार्टिन्यु ने कहा है कि 'समाजहीन मनुष्य नाम का ही मनुष्य है। अतः मानव-आचरण का अध्ययन बिना उसके सामाजिक जीवन का अध्ययन सम्भव नहीं है।' व्यक्ति का सुख समाज के सुख से ही सम्बन्धित है। वास्तव में बिना समाज के मनुष्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती । जिसे मनुष्य का सद्गुण या दुर्गुण कहा जाता है, वह तो मनुष्य का दूसरे के साथ कैसा व्यवहार होता है, इसी पर निर्भर है। अतः आचारशास्त्र और समाजशास्त्र में घनिष्ठ सम्बन्ध है । मानव-आचरण का क्या आदर्श होना चाहिए यह व्यक्ति और समाज के वास्तविक सम्बन्ध को जानकर ही विचारा जा सकता है। समाज और व्यक्ति में अन्योन्याश्रय सम्बन्ध For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001338
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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