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________________ जीवन का नियामक शास्त्र : आचार १४९ समुदाय के आचरण का नियमन मनुष्य की स्वाभाविक मूलप्रवृत्तियों के द्वारा होता है। डॉ. मैक्डूगल का कहना है कि सामाजिक आचार का आधार प्रेम अथवा कोमलता का संवेग है। इस वैज्ञानिक सिद्धान्त के अनुसार जब तक व्यक्ति में कोमलता का संवेग और प्रेम न हो तब तक उसका आचरण सुन्दर नहीं बन सकता। जिन्सवर्ग की आलोचना का सार यह है कि सामाजिक आचरण के लिए मनुष्य को कुछ उदार और श्रद्धाशील भी बनना पड़ता है। सामाजिक आचार की व्याख्या कुछ विद्वानों ने कतिपय इस प्रकार की प्रवृत्तियों पर की है जिनको यथार्थ में प्रवृत्ति की संज्ञा नहीं दी जा सकती किन्तु वे प्रवृत्ति के समान प्रतीत होती हैं। इसका अर्थ यह है कि आचरण की यह व्याख्या बाह्य संकेत के अनुकरण के सिद्धान्त से सम्बन्ध रखती है। आचार अथवा धर्म सामाजिक व्यवस्था के लिए उतना ही आवश्यक है जितना कि राजनीति। बेजहॉट (Bagehot) का मत बेजहॉट के अनुसार आदिम मानव समाज के आचार एवं व्यवहार, रीति और नीति तथा धर्म और संस्कृति को प्रेरणा देने वाला तत्त्व अनुकरण है। प्रायः यह देखा जाता है कि एक व्यक्ति दूसरे का अनुकरण करता है। घर में बालक अपने गुरुजनों का अनुकरण करते हैं। शिष्य गुरु का अनुकरण करता है। अनुयायी अपने नेता का अनुकरण करते हैं। कुछ मनोविज्ञानपण्डितों ने सामाजिक मनुष्य की समस्त क्रिया का मूल आधार अनुकरण के इस सामाजिक तथ्य को माना है। प्रसिद्ध समाजशास्त्री बेजहॉट ने सन् १८७८ में अपने ग्रन्थ Physics & Politics में इस सिद्धान्त की ओर सर्वप्रथम संकेत किया था और फ्रांसीसी समाजशास्त्री टार्ड ने १८८५ में इसको अधिक विकसित रूप प्रदान किया। अनुकरण मानव-मन में रहने वाली एक वृत्ति है और इसी के अनुसार आचार बनता है। प्रत्येक व्यक्ति जो कुछ दृष्टिगोचर होता है, वह अपने इसी अनुकरण गुण का विकास है। बेजहॉट के मत के अनुसार इस प्रकार का अनुकरण जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आज भी व्याप्त है। वेश एवं भूषा में, रहन-सहन में और यहाँ तक कि धर्म और राजनीति में भी अनुकरण का प्रभाव है। जनता किसी विशिष्ट व्यक्ति का किसी वस्तु में आकर्षण अनुभव करती है और यथाशक्ति उसके अनुकरण का प्रयत्न करती है। बेजहॉट का मत है कि अनुकरण की क्रिया अज्ञात रूप में होती है। इसके लिए व्यक्ति को न इच्छा करनी पड़ती है और न चेष्टा। कुछ भी हो और किसी भी प्रकार हो परन्तु यह सत्य है कि जीवन-यात्रा में अनुकरण का बड़ा महत्त्व है। मनोविज्ञान के सिद्धान्त के अनुसार यह अनुकरण वृत्ति ही हमारे आचार की आधारशिला बनती है। ___टार्ड का अनुकरण का सिद्धान्त सत्य के सम्पूर्ण दर्शन का एक अंग है। समस्त सामाजिक समस्याओं के लिए इसका उपयोग करके उन्होंने अद्भुत कल्पना-शक्ति का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001338
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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