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________________ १४८ अध्यात्म-प्रवचन स्पिनोजा की नीति यूरोपीय दार्शनिकों में स्पिनोजा ने नीति और राजनीति दोनों के सम्बन्ध में अपने विचार स्पष्ट रूप से रखे हैं। स्पिनोजा का सिद्धान्त यह था कि संसार में जो कुछ हो रहा है, नियम-बद्ध हो रहा है, इससे अधिक कुछ हो ही नहीं सकता था। स्पिनोजा यह भी कहता है, कि आत्मरक्षा से बढ़कर अन्य कोई धर्म नहीं। स्पिनोजा ने कहा था, जो पुरुष समस्त प्राणियों को आत्मा में और आत्मा को सर्व प्राणियों में देखता है, वह किसी से घृणा नहीं करता। स्पिनोजा का यह कथन धर्म और सदाचार का ऊँचे से ऊँचा रूप मानव-समाज के समक्ष प्रस्तुत करता है। राजनीति के सम्बन्ध में स्पिनोजा का विचार था, कि वह मानव उद्वेगों का खेल है। वह कहता है कि शासक का मुख्य काम शासन करना है। प्रत्येक मनुष्य अपने आपको संरक्षित रखने के लिए शक्ति-सम्पन्न होना चाहता है। मनुष्यों के लिए सबसे बड़ी हानि समाज और राष्ट्र में अव्यवस्था है। जो शासन रक्षा और स्वाधीनता दे सकता है, उसकी शक्ति कायम रखने के लिए व्यक्ति को हर प्रकार के बलिदान देने के लिए तैयार रहना चाहिए। अमरीकी दार्शनिक ___ अमरीकी दार्शनिकों ने भी नीति, सदाचार और धर्म के रूप में बहुत कुछ लिखा है। हम पूछते हैं-नैतिक आदर्श क्या है ? अमरीकी दार्शनिक ड्यूड पूछता है-किस विषय में और किस स्थिति के विषय में प्रश्न करते हो ? समस्त मनुष्य एक स्थिति में नहीं और कोई एक मनुष्य भी एक ही स्थिति में नहीं रहता। प्रत्येक का कर्तव्य वर्तमान बाधा को दूर करके आगे बढ़ना है। यदि मेरे लिए इस समय शारीरिक दुर्बलता बाधा है, तो मेरा कर्तव्य स्वस्थ और बलवान होना है। यदि मेरे पड़ौसी के लिए पारिवारिक कलह विशेष बाधा है, तो उसका कर्तव्य उस कलह को दूर करना है। यह बात विशेष महत्त्व की नहीं है कि हम कहाँ खड़े हैं ? महत्त्व की बात यह है कि जहाँ कहीं हम हैं, वहाँ से आगे बढ़ने का प्रयत्न करें। अच्छा व्यक्ति वह है, जो और अधिक अच्छा बनने के प्रयल में लगा रहता है। इस प्रकार पाश्चात्य दर्शन में आचार, धर्म और नैतिकता के सम्बन्ध में बहुत कुछ कहा गया है। सदाचारमय जीवन बनाना ही धर्म का मुख्य काम है। मनोविज्ञान और आचार सामाजिक आदर्शों की प्रतिष्ठा समाज के आचरण और व्यवहार पर निर्भर रहती है। सामाजिक आचरण की व्याख्या दो परस्पर विरोधी सिद्धान्तों के आधार पर की जाती है-पहला बुद्धिवाद और दूसरा मूलप्रवृत्तिवाद। बुद्धिवाद के अनुसार मनुष्य का आचरण बुद्धि के द्वारा नियन्त्रित होता है। किसी कार्य को करने से पूर्व मनुष्य साध्य एवं साधन आदि पर पर्याप्त विचार कर लेता है। फिर विवेकपूर्वक उस कार्य में लग जाता है। दूसरे सिद्धान्त के अनुसार सामाजिक आचरण में इस प्रकार की स्थिति का ध्यान रखना आवश्यक नहीं है। व्यक्ति के अनुभव और विचार व्यक्ति तक ही सीमित रहते हैं। व्यापक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001338
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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