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________________ ११८ अध्यात्म-प्रवचन १.अशन २.पान ३.खाद्य ४.स्वाध इस व्रत में इस चारों प्रकार के भोजन का प्रत्याख्यान होता है। श्रावक पर्व तिथियों पर पोषध व्रत की साधना करता है। शरीर के प्रसाधनों का त्याग करता है। समस्त आभूषणों का त्याग करता है। एकान्त में पोषध-शाला में रहता है। तप,जप, ध्यान,शास्त्र का स्वाध्याय करता है, और स्तोत्र का भी पाठ करता है। न कुछ खाना, न कुछ पीना। सूर्योदय से लेकर अगले दिन के सूर्योदय तक अर्थात् अष्ट प्रहर की यह अध्यात्म भाव की कठोर एवं कठिन साधना है। समस्त सावध क्रियाओं का इसमें त्याग होता है। पोषध के साथ उपवास शब्द भी जोड़ा जाता है, जिसका अर्थ है-पोषध व्रत में उपवास अर्थात् अनाहार अवश्य होता है, उसका पूरा रूप इस प्रकार है-पोषधोपवास व्रत। इस व्रत की साधना में स्थित श्रावक श्रमणभूत अर्थात् श्रमणवत् माना जाता है। क्योंकि इसमें ब्रह्मचर्य का भी पालन किया जाता है। परिग्रह का भी त्याग होता है। पोषध व्रत के अतिचार अन्य व्रतों की भाँति इसके भी पाँच अतिचार होते हैं, जिनका सेवन नहीं किया जाता १. अप्रमार्जित-दुष्प्रमार्जित शय्या-संस्तारक। २. अप्रतिलेखित-दुष्प्रतिलेखित, शय्या-संस्तारक। ३. अप्रतिलेखित-दुष्प्रतिलेखित उच्चार-प्रनवण भूमि अर्थात् स्थान विशेष। ४. अप्रमार्जित-दुष्प्रमार्जित उच्चार-प्रस्रवण भूमि अर्थात् स्थान विशेष। ५. पोषधोपवास सम्यक् अननुपालनता। यह पञ्चम अतिचार है। (क) शय्या अर्थात् वसति, मकान और संस्तारक अर्थात् बिछौना, कंबल आदि का प्रतिलेखन अर्थात् प्रत्यवेक्षण-निरीक्षण न करना, अथवा विधिपूर्वक ठीक ढंग से न करना, अप्रतिलेखित-दुष्प्रतिलेखित अतिचार है। (ख) शय्या और संस्तारक को प्रमार्जित किए बिना, पोंछे बिना, अथवा बिना अच्छी तरह साफ किए, काम में लेना, अप्रमार्जित-दुष्प्रमार्जित शय्या-संस्तारक अतिचार कहा गया है। (ग) मल-मूत्र भूमि को उच्चार-प्रस्रवण भूमि कहा जाता है, उसके सम्बन्ध में भी चार प्रकार समझ लेना चाहिए। (घ) पोषधोपवास का सम्यक् प्रकार से पालन न करना, पञ्चम अतिचार है। इन सब अतिचारों को समझकर इनका आचरण नहीं करना चहिए। प्रथम के चार अतिचारों में अनिरीक्षण अथवा दुर्निरीक्षण, और अप्रमार्जन तथा दुष्प्रमार्जन के कारण For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001338
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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