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________________ श्रावक के तीन गुण-व्रत ११३ अनर्थ दण्ड विरमण व्रत के अतिचारअन्य व्रतों की भाँति अनर्थ-दण्ड-विरमण व्रत के भी पाँच अतिचार होते हैं १. कन्दर्प २. कौत्कुच्य ३. मौखर्य ४. संयुक्त अधिकरण ५. उपभोग-परिभोग अतिरिक्त स्वयं विकार उत्पन्न करने वाले बोल बोलना अथवा दूसरे किसी के सुनना-कन्दर्प है। विकार उत्पन्न करने वाली भाण्ड जैसी चेष्टा करना-कौत्कुच्य है। समय-असमय असंबद्ध तथा अनावश्यक वचन बोलना-मौखर्य कहा जाता है। जिन उपकरणों के संयोग से हिंसा के उग्र होने की संभावना हो, उन्हें संयुक्त करके रखना-संयुक्त अधिकरण है। जैसे कारतूस भरकर पिस्तौल रखना, बाण चढ़ाकर धनुष रखना, म्यान से निकाल कर तलवार रखना। आवश्यकता से अधिक उपभोग एवं परिभोग की सामग्री का संग्रह रखना-उपभोग-परिभोग-अतिरिक्त है। ये पाँचों अतिचार निरर्थक हिंसा का परिपोषण करने वाले हैं। साधक श्रावक को कदापि इनका सेवन नहीं करना चाहिए। निष्प्रयोजन हिंसा और असत्य भाषण मनुष्य की प्रवृत्ति के अंग बन चुके हैं। स्नान मञ्जन में अधिक जल का प्रयोग करना। भोजन में जूठा छोड़ना, संभाषण में अर्थात् बात-चीत में अश्लील तथा अपशब्दों का प्रयोग करना। मौज-मजा करने के लिए सुरापान करना। व्यसन के मादक द्रव्यों का सेवन करना। चल चित्र अधिक देखना। नाच-गान में अधिक अभिरुचि रखना। ऐसे उपन्यास, कथा, एवं कहानी पढ़ना, जिससे मनोविकार प्रबल होते हों। व्यर्थ का चिन्तन करना। श्रावक को इन सबका त्याग करना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001338
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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