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७२ | अध्यात्म-प्रवचन
वेग से प्रवाहित हुई कि उसके पीछे उनकी चिरानुष्ठित अध्यात्म-साधनाओं का प्रवाह आज भी बह रहा है । हजारों वर्षों के बाद, ये स्तोत्र आज भी लोगों के मन एवं मस्तिष्क में प्रेम और श्रद्धा के मधुर भाव जागृत कर देते हैं। क्योंकि उनके पीछे उनके जीवन का गहन चिन्तन और अनुभव रहा है । इसी आधार पर उनमें आज भी वह ओजस् और शक्ति विद्यमान है, कि पाठक पढ़ते समय आत्मविभोर हो जाता हैं ।
आपने देखा होगा कि पर्वत के अन्दर से झरने फूट पड़ते हैं । दुर्गम एवं कठोर चट्टानों को भेद कर वह तरल जल धारा बाहर कैसे आ जाती है, यह एक महान् आश्चर्य है । पर्वत की कठोर चट्टानों से बह निकलने वाले झरने भी सब समान नहीं होते । उनमें से कुछ ऊपरी सतह के होते हैं, और कुछ गहन तल से निकलकर बाहर में आते हैं । जो झरने ऊपर-ऊपर बहते हैं, वे जल्दी सूख जाते हैं। सूखने के बाद उनका अस्तित्व भी विलुप्त हो जाता है । परन्तु जो झरना पृथ्वी के गर्भ के अन्दर से फूटकर बाहर निकलता है, जिसे अन्दर में से निकालने के लिए बाहर से कोई प्रयत्न नहीं करना पड़ता, और न खोदखोदकर जिसका मार्ग ही बनाना पड़ता है, प्रत्युत जो स्वयं ही अपनी प्रचंड शक्ति से फूटकर बाहर निकलता है और अपना मार्ग बनाता है, वह झरना स्थायी रहता है और उसका प्रवाह सतत प्रवाहमान रहता है । इस प्रकार के झरने में अखूट और अटूट जल राशि भरी रहती है । उसमें से कोई कितना भी जल ग्रहण करे, किन्तु उसके यहाँ जल की क्या कमी आती है, क्योंकि वह अन्दर में बहुत अथाह और अगाध होता है । भूमि को खोदकर एवं तोड़कर कूप को तैयार किया जाता है । परन्तु झरने को इस प्रकार तैयार नहीं करना पड़ता । गंगा जैसे विराट जल प्रवाहों को बताइए, किसने खोदकर हिमवान् से बाहर निकाला है और किसने उनके लिए मार्ग बनाया है ? ये स्वयं शक्ति के केन्द्र हैं | उन्हें बाहर से प्रेरित नहीं करना पड़ता ।
मैं आपसे अनुभवी तत्त्व चिन्तकों की बात कर रहा था । उनके अगाध अनुभव द्वारा उपदिष्ट मानव-जीवन के उस सत्य एवं तथ्य की बात कह रहा था, जिसे प्राप्त करना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है । वह तथ्य क्या है ? यह प्रश्न अतीत से किया जाता रहा है और सम्भवतः भविष्य में भी किया जाता रहेगा । इस प्रश्न का समाधान एक ही
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