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________________ ३६० / अध्यात्म-प्रवचन है और नष्ट भी कर डालता है। इस दृष्टि से बन्ध भी आत्मा में है और मोक्ष भी आत्मा में है। याद रखिए, जहाँ चेतन है, वहीं पर कर्म है और जहाँ कर्म हैं, वहीं उसका भोग भी है और जहाँ भोग है, वहीं उसका मोक्ष भी है। बन्ध और मोक्ष दोनों आत्मा में ही रहते हैं । अतः यह ज्ञानस्वरूप आत्मा एक विलक्षण शक्ति है। ___ मैं आपसे चेतना की बात कह रहा था । चेतना एक शक्ति है जो चेतन में रहती है । इस चेतना के आधार से ही चेतन, चेतन कहलाता है। चेतना एक विशिष्ट गुण है । इस गुण को सत्ता से ही आत्मा संसार के विविध भावों को जान सकता है और देख सकता है । चेतना से ही यह चेतन आत्मा जड़ पदार्थों से भिन्न परिलक्षित होता है। जड़ और चेतन पदार्थों में यदि कोई भेद-रेखा है, तो वह चेतन की चेतना ही है । शास्त्रों में चेतना के सम्बन्ध में बहुत कुछ लिखा गया है । केवल लिखा ही नहीं गया, बल्कि जो कुछ अनुभव किया गया था, उसे ही लिपिबद्ध किया गया है। जन-दर्शन में चेतना के तीन भेद माने गये हैं-कर्म चेतना, कर्म फल चेतना और ज्ञान-चेतना। इन तीनों चेतनाओं के स्वरूप का प्रतिपादन करते हुए कहा गया है, कि चेतना यद्यपि अपने आप में अखण्ड और एक तत्व है, किन्तु उसके साथ तीन विशेषण लगे हए हैं-कर्म, कर्मफल और ज्ञान । सबसे पहले कर्म चेतना का विवेचन किया गया है कि कर्म को केवल कर्म ही मत समझना, क्योंकि उसके साथ चेतना भी है। और इसी कारण से बन्ध भी होता है। यदि कर्म के साथ चेतना न हो तो बन्ध भी नहीं हो सकता। कल्पना कीजिए आप एक भव्य भवन में बैठे हैं और उसकी छत में लटकने वाला पंखा किसी कारण वश नीचे गिर पड़ता है, नीचे बैठे लोगों में से अनेक व्यक्तियों का सिर फट जाता है। यह एक कमें है, जो पंखे में हुआ है । आप बतलाइए, उस पंखे को कौन सा कर्म लगा? अथवा उस पंखे को कौन सा बन्ध हुआ? इसी बात को दूसरे प्रकार से समझिए, कहीं चन्दन रखा हुआ है अथवा जलती हुई अगरबत्ती रखी है, वहाँ से गुजरने वाले सभी व्यक्ति उसकी भीनी सुगन्ध का आनन्द लेते हैं । यह भी एक प्रकार का कर्म है । आप बतलाइए, उस चन्दन को और अगरबत्ती को कौन सा बन्ध हुआ? आप कहेंगे, उसे बन्ध कैसे हो सकता है, क्योंकि वे तो जड़ है। परन्तु मैं कहता है कि के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001337
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size17 MB
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