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________________ आठ अंग और सात भय | ३५१ प्रकार के भयों में से एक भी भय जिसके मन में न हो, वही सच्चा सम्यक् दृष्टि है। - इहलोक-भय, सात भयों में सबसे पहला भय है। इहलोक का अर्थ है-मनुष्य के लिए अपना सजातीय मनुष्य-समाज, और परलोक का अर्थ है-विजातीय समाज । परलोक में पशु-पक्षी और सुर-असुर आदि सभी का समावेश हो जाता है । इस लोक का भय और परलोक का भय किस प्रकार होता है, यह बताने से पहले यह आवश्यक है, कि यहाँ पर जो भयों की परिगणना की गई है, वह केवल सम्यक दृष्टि के जीवन को लक्ष्य करके ही की गई है । सम्यक् दृष्टि के जीवन में किसी भी प्रकार का किसी भी अंश में भय नहीं रहता, यह कहने का यहाँ उद्देश्य नहीं है । यहाँ तो केवल इतना ही कहना अभीष्ट है, कि उक्त सात प्रकार के भयों में से सम्यक्त्व ज्योति का विघातकजैसा किसी भी प्रकार का भय सम्यक् दृष्टि को होता नहीं है। ___इहलोक-भय के अनेक कारण हैं, किन्तु हम उनको दो भागों में विभक्त कर सकते हैं इष्ट-वियोग और अनिष्ट-संयोग। इष्ट-वियोग का अर्थ है-किसी भी प्रिय वस्तु का वियोग हो जाना । प्रिय वस्तु के दो भेद किए जा सकते हैं-चेतन और अचेतन । चेतन में माता, पिता, पति, पत्नी, भ्राता, भगिनी, पुत्र एवं पुत्री आदि चेतन का समावेश हो जाता है । अचेतन में धन, सम्पत्ति एवं भोग्य-पदार्थ आदि सभी जड़ का समावेश हो जाता है । जड़ और चेतन रूप अपनी किसी भी इष्ट वस्तु का वियोग हो जाने पर सम्यक दृष्टि के मन में व्याकुलता नहीं होती। क्योंकि वह इस तथ्य को भलीभांति जानता है, कि जो भी, जितना भी और जैसा भी संयोग है, उसका एक दिन वियोग अवश्य होगा । संयोग का वियोग होना और वियोग का संयोग होना, यही तो संसार का खेल है। सम्यक् दृष्टि आत्मा इस संसार को खेल का एक मैदान समझता है और अपने आपको उसका एक खिलाडी । संसार के इस खेल में कभी जय और कभी पराजय होती ही रहती है। कभी संयोग और कभी वियोग चलता ही रहता है। सम्यक् दृष्टि आत्मा सोचता है, कि जो कुछ आता है वह पर है, और जो पर है, वह एक दिन जाएगा भी अवश्य ही । अतः जड़ और चेतन के किसी भी प्रकार के वियोग से वह विचलित नहीं होता। अब रही अनिष्ट-संयोग की बात, इस अनिष्ट-संयोग से भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001337
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size17 MB
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