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________________ ३३४ | अध्यात्म प्रवचन प्राप्ति अवश्य हो करेगा । एक क्षणमात्र का सम्यक् दर्शन भी अनन्त जन्म मरण का नाश करने वाला है । सम्यक् दर्शन के अभाव में जीव अनन्त काल में अन्य अनेक साधनाएँ कर चुका है, परन्तु बन्धन की एक कड़ी भी टूट नहीं पाई । यदि एक क्षण के लिए भी यह जीव सम्यक् दर्शन प्रकट करे, तो उसकी मुक्ति हुए बिना न रहे । सम्यक् दर्शन ही साधक की सर्वप्रथम अध्यात्म-साधना है । सम्यक् दर्शन की साधना के बल पर ही यह आत्मा अपने विविध भवों के मूल बीज को मिटा सकता है। जब तक आत्मा में मिथ्यात्व भाव और कषायभाव किसी भी रूप में रहता है, तब तक भव- बन्धन से विमुक्ति मिलना कथमपि सम्भव नहीं है । जिस आत्मा में सम्यक् दर्शन की ज्योति प्रकट हो गई, वही ज्ञानी है, वही चरित्रवान है, वही शाश्वत सुख को प्राप्त करने वाला साधक है । सम्यक् दर्शन की विमल साधना करने वाला व्यक्ति कभी-न-कभी अवश्य ही इन संसारी बन्धनों से विमुक्त हो सकेगा । आपके समक्ष सम्यक् दर्शन का वर्णन चल रहा है । सम्यक् दर्शन की महिमा एवं सम्यक् दर्शन की गरिमा के सम्बन्ध में बहुत कुछ कहा जा चुका है और बहुत कुछ कहा जा सकता है । अब सम्यक् दर्शन के सम्बन्ध में कुछ अन्य बातों पर भी विचार कर लें, जिन पर विचार करना आवश्यक प्रतीत होता हैं । सर्वप्रथम यह प्रश्न उपस्थित होता है, कि सम्यक् दर्शन आत्मा का अमूर्त गुण है । आत्मा एक अमूर्त तत्व है, फलतः गुण भी अमूर्त ही हैं, फिर उन्हें हम कैसे देख सकते है, और कैसे जान सकने हैं ? इस स्थिति में हमें यह पता कैसे चले कि अनुक आत्मा को सम्यक् दर्शन की उपलब्धि हो चुकी है, अथवा नहीं ? प्रश्न बड़े ही महत्व का है । इसके समाधान में शास्त्रकारों ने एवं अन्य विभिन्न ग्रन्थकारों ने यह बतलाया है, कि प्रत्येक वस्तु को जानने के लिए, लक्षण की आवश्यकता है । बिना लक्षण के लक्ष्य को नहीं जाना जा सकता । यहाँ पर सम्यक् दर्शन लक्ष्य है, हम उसका परिबोध करना चाहते हैं, अतः उसके लक्षण की आवश्यकता है । आत्मा के सम्यक् दर्शन गुण को जानने के लिए पाँच लक्षण बताये गए हैं- प्रशम, संवेग, निर्वेद, अनुकम्पा और आस्तिक्य । ये पाँचों अथवा इनमें से कोई भी एक लक्षण यदि मिलता है, तो समझना चाहिए कि उस आत्मा को सम्यक् दर्शन की उपलब्धि हो चुकी है । परन्तु इतना ध्यान रखिए, कि यह लक्षण व्यवहार नय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001337
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size17 MB
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