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________________ १९ सम्यग् दर्शन के लक्षण : अतिचार यह जगत् आदिहोन और अन्तहोत है । इसका प्रवाह अनन्त काल से चला आ रहा है और अनन्त काल तक चलता ही रहेगा । यह जगत अतीत में कभी नहीं था, यह नहीं कहा जा सकता । और यह जगत् भविष्य में कभी नहीं रहेगा, यह भी नहीं कहा जा सकता । इस अनादि और अनन्त जगत् में आत्मा अनादि काल से ससरण करता आ रहा है । जब तक आत्मा में मिथ्यात्व भाव और कषायभाव विद्यमान है, तब तक जन्म और मरण के परिचक्र को परिसमाप्त नहीं किया जा सकता । सम्यक् दर्शन की साधना और सम्यक् दर्शन की आराधना से ही, इस आत्मा का यह अनादि संसरण समाप्त हो सकता है और उसे स्वस्वरूप की उपलब्धि हो सकती है । सम्यक् दर्शन में वह दिव्य शक्ति है, जो अपनी पूर्ण विशुद्ध कोटि में पहुँचकर एक दिन आत्मा के समग्र विकल्प और विकारों को दूर कर सकती है । जिस किसी भी आत्मा में सम्यक् दर्शन की ज्योति का आविर्भाव हो जाता है, यह निश्चित है कि वह आत्मा देर सवेर में मोक्ष की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001337
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size17 MB
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