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________________ सम्यक् दर्शन के विविध रूप ! ३२७ जिन्हें धर्म के नाम पर किया गया था, किन्तु वस्तुतः उसमें धर्म की आत्मा नहीं थी। आज के इस वर्तमान युग में हम यह देख रहे हैं कि हिन्दी-रक्षा और हिन्दी-विरोध में तथा गौ-रक्षा और गौ-विरोध में जो कुछ किया जा रहा है, उसमें धर्म नहीं, पंथवादी मानव वृत्ति ही अधिक काम कर रही है। दक्षिण भारत में राम को गाली देना और रामायण को अग्नि में जला देना, यह सब कुछ धर्म के नाम पर और संस्कृति के नाम पर किया जा रहा है। द्रविड़ लोग यह विश्वास रखते हैं, कि द्राविड़ संस्कृति ऊँची है और आर्य संस्कृति नीची है। जाति के नाम पर रावण की पूजा करना और राम का तिरस्कार एवं अनादर करना किस भाँति धर्म कहा जा सकता है ? इस प्रकार के कृत्यों से यदि कोई व्यक्ति यह सोचता है, कि मैं अपनी संस्कृति और अपने धर्म की उन्नति कर रहा है, तो वह धर्म और संस्कृति की रक्षा नहीं, अपितु हत्या ही करता है। मैं इन सभी प्रकार के अन्ध विश्वासों को, जो सम्यक् दर्शन के नाम पर प्रचलित हैं, मिथ्या दर्शन ही मानता हूँ। किसी भी राष्ट्र के प्रति, किसी भी जाति के प्रति, किसी भी समाज के प्रति और किसी भी वर्ग विशेष के प्रति घणा की भावना रखना धर्म नहीं कहा जा सकता, सम्यक् दर्शन नहीं कहा जा सकता। ___मैं आपसे यह कह रहा था, कि किसी युग में लोगों ने पंथ और सम्प्रदाय को ही धर्म मानकर जो कुछ दूसरे पंथ और वर्ग पर अन्याय और अत्याचार किया, उसे भी लोगों ने अपनी मतान्धता के कारण धर्म मान लिया । औरङ्गजेब का विश्वास था, कि जितने भी अधिक हिन्दुओं को मुस्लिम बनाया जा सके, उतना ही अधिक धर्म होगा । इसी विश्वास के आधार पर अपनी तलवार की शक्ति से उसने हजारों हिन्दुओं को मुसलमान बनाया। ईसाई लोग और उनके धर्म गुरु पादरी आज मानव-जाति की सेवा के नाम पर जन धन का प्रलोभन देकर, पिछड़ी जातियों को ईसाई बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं। उनका विश्वास है, कि इस कार्य को करके, हम ईसा के सच्चे भक्त बन जाएंगे। परन्तु इस विषय पर गम्भीरता के साथ सोचने के बाद बुद्धिमान व्यक्ति इसी निर्णय पर पहँचता है, कि इस प्रकार के कृत्यों में न धर्म है और न संस्कृति । एक व्यक्ति, यदि वह ब्राह्मण से मुसलमान बन जाए अथवा ब्राह्मण से ईसाई बन जाए, तो यह तो उसके चोटी और दाढ़ी आदि के रूप में तन का परिवर्तन हुआ, मन का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001337
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size17 MB
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