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सम्यग् दर्शन के विविध रूप
सम्यक् दर्शन में दो शब्द हैं-सम्यक् और दर्शन । दर्शन का सामान्यतः अर्थ है --किसी वस्तु का देखना अर्थात् साक्षात्कार करना। परन्तु यहाँ पर मोक्ष और उसके स्वरूप का वर्णन चल रहा है, अतः उसके साधन के अर्थ में प्रयुक्त दर्शन शब्द का कोई विशेष अर्थ होना चाहिए । और वह विशेष अर्थ क्या है ? इस प्रश्न के उत्तर में कहना है कि यहाँ दर्शन शब्द का अर्थ केवल देखना ही नहीं है। प्रस्तुत प्रसंग में दर्शन शब्द के दो अर्थ हैं-दष्टि और निश्चय । जब दर्शन शब्द का अर्थ दष्टि और निश्चय किया जाता है, तब इसका अर्थ यह होगा, कि दृष्टि भ्रान्त भी हो सकती है और निश्चय गलत भी हो सकता है। उस भ्रान्त दष्टि और गलत निश्चय का निषेध करने के लिए ही, दर्शन से पूर्व सम्यक् शब्द जोड़ा जाता है जिसका अर्थ होता है-वह दृष्टि, जिसमें किसी भी प्रकार की भ्रान्ति न हो, और वह निश्चय, जो अयथार्थ न होकर यथार्थभूत हो ।।
एक बात यहाँ पर और भी विचारणीय है, और वह यह कि प्रत्येक मत और प्रत्येक पंथ, अपने को सच्चा समझता है और दूसरे को झुठा समझता है। वास्तव में कौन सच्चा है और कौन झूठा है, इसकी परीक्षा करना भी आवश्यक हो जाता है। मैं समझता हूँ जो धर्म और दर्शन सत्य की उपासना करता है, फिर भले ही वह सत्य
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