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अध्यात्म प्रवचन | ३२१ भूल मत करो। परन्तु आप उस ज्ञानी की बात पर विश्वास नहीं करते और उस सुख दुःखात्मक अथवा पाप पुण्यात्मक साबुन की टिकिया को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं । यह बात निश्चित है, कि जब तक आप शुभ या अशुभ का त्याग नहीं करेंगे, तब तक विशुद्ध भाव का आनन्द भी आप नहीं ले सकेंगे। __ मैं आपसे कह रहा था कि अध्यात्म-साधना में सफलता प्राप्त करने के लिये, राग और द्वष के विकल्पों को जीतने की आवश्यकता है। जब तक जीवन में अनासक्ति का भाव और वीतरागता का भाव नहीं आएगा, तब तक जीवन का कल्याण नहीं हो सकेगा। वीतरागता को वह कला प्राप्त करो, जो ऐसी अद्भुत है, कि संसार-सागर में गोता लगाने पर भी, उसकी एक भी बंद आप पर न ठहर सके, और यह कला राग-द्वेष के विकल्प को जीतने की ही हो सकती है। जब आत्मा में वीतराग भाव आ जाता है, तब संसार के किसी भी पदार्थ का उसके जीवन पर अनुकूल एवं प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। मैं आपसे कह रहा था, कि संसार का विपरीत भाव ही मोक्ष है। जैसे दूध-दूध है और पानी-पानी है, यह दोनों की शुद्ध अवस्था है । जब दोनों को मिला दिया जाता है, तब यह दोनों की अशुद्ध अवस्था कहलाती है । इसी प्रकार जीव और पुद्गल की संयोगावस्था संसार है और इन दोनों की वियोगावस्था ही मोक्ष हैं। इस मोक्ष अवस्था में जीव, जीव रह जाता है और पुद्गल पुद्गल रह जाता है। वस्तुतः यही दोनों की विशुद्ध स्थिति है।
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