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________________ ३१४ | अध्यात्म प्रवचन मधुकर राजा जब अपना छत्ता छोड़ देता है, तो इस जीवन की शेष समस्त क्रियाएँ अपने आप बन्द हो जाती हैं, उन्हें बन्द करने की आवश्यकता नहीं रहती। इस बात का ध्यान रखें, कि जिस मधुमक्खी को रानी कहा जाता है, पहले उसे राजा कहा जाता था। उसका प्रयोग स्त्रीलिंग और पुल्लिग दोनों में होता है। आत्मा शब्द का स्त्रीलिंग और पूल्लिग दोनों में प्रयोग किया जाता है । यद्यपि आत्मा का अपना कोई लिंग नहीं होता--न स्त्रीलिंग और न पुल्लिग । फिर भी लोक-भाषा में हम इस प्रकार का प्रयोग किया करते हैं, कि मेरी आत्मा अथवा मेरा आत्मा, इसी पर से यह जाना जाता है, कि आत्मा शब्द का प्रयोग हिन्दी में उभयलिंग में किया जाता है । यह सब व्यवहार-दृष्टि है, निश्चय दृष्टि में तो आत्मा का कोई लिंग होता ही नहीं। आत्मा न स्त्री है, न पुरुष है और न नपंसक है। आत्मा न बाल है, न तरुण है, न प्रौढ़ है और न वृद्ध है । ये सब अवस्थाएँ आत्मा की नहीं, शरीर की होती हैं। परन्तु इनके आधार पर शरीर को आत्मा समझना और आत्मा को शरीर समझना एक भयंकर मिथ्यात्व है। जब तक यह मिथ्यात्व नहीं टूटेगा, तब तक आत्मा का उद्धार और कल्याण भी नहीं हो सकेगा। इस मिथ्यात्व को तोड़ने की शक्ति एकमात्र सम्यक दर्शन में ही है। मैं आपसे कह रहा था, कि जीवन के रहने पर ही सब कुछ रहता है और जीवन के न रहने पर कुछ भी नहीं रहता। इसी आधार पर अध्यात्मवादी दर्शन में जीव को अन्य सभी तत्वों का राजा कहा जाता है। यदि इस जीव, चेतन और आत्मा का वास्तविक बोध हो जाता है, तो जीव से भिन्न अजीव को एवं जड़ को पहचानना आसान हो जाता है। अजीव के परिज्ञान के लिए भी, पहले जीव का परिबोध ही आवश्यक है। अपने को जानो, अपने को पहचानो, यही सबसे बड़ा सिद्धान्त है, यही सबसे बड़ा ज्ञान है और यही सबसे बड़ा सम्यक् दर्शन है ! जीव की पहचान ही सबसे पहला तत्व है। जब जीव का ज्ञान हो जाता है, तब प्रश्न उठता है कि क्या इस संसार में जीव का प्रतिपक्षी भी कोई तत्व है ? इसके उत्तर में हम कह सकते है, कि जीव का प्रतिपक्षी अजीव है। अतः अजीव के ज्ञान के लिए जीव को ही आधार बनाना पड़ता है। इसीलिए मैंने कहा था, कि सप्त तत्वों में, षड् द्रव्यों में और नव पदार्थों में सबसे मुख्य तत्व और सबसे मुख्य द्रव्य, सबसे प्रधान पदार्थ जीव ही है । जीव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001337
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size17 MB
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