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________________ संसार और मोक्ष | ३१३ है और अपनी बात आत्मा की बात है । यही जीवन का मूल तत्व है, जिस पर जीवन की समस्त क्रियाएँ आधारित हैं । जब तक यह शरीर में विद्यमान रहता है, तभी तक शरीर क्रिया करता है। शुभ क्रिया अथवा अशुभ क्रिया का आधार जीव ही है । जीवन के अभाव में न शुभ क्रिया हो सकती है और न अशुभ क्रिया हो सकती है । मन, वचन और शरीर की जितनी भी क्रियाएँ होती हैं, उन सबका आधार जीव ही तो होता है । यदि आत्म-तत्व न हो, तो फिर इस विश्व में कोई भी व्यवस्था न रहे । विश्व की व्यवस्था का मुख्य आधार जीव ही है । आपने देखा होगा, कि जो लोग मधुमक्खी पालने का काम करते हैं, वे लोग किस प्रकार उनसे मधु प्राप्त करते हैं । मधु प्राप्त करने की प्रक्रिया का वर्णन करना मुझे यहाँ अभीष्ट नहीं है, मैं तो आपको केवल यह बताना चाहता हूँ, कि मधुमक्खियों का जीवन व्यवहार कैसा होता है और उनके जीवन की व्यवस्था किस प्रकार चलती है ? हजारों-हजार मधुमक्खियों में रानी मक्खी एक ही होती है, उसी के संकेत पर शेष मक्खियां अपना-अपना कार्य करती हैं । जब तक छत्ते पर रानी मक्खी बैठी रहती है, तब तक सब अपना-अपना कार्य करती रहती हैं, और जब रानी मक्खी चली जाती है, तो शेष सभी मक्खियाँ भी चली जाती हैं । यही सिद्धान्त यहाँ पर लागू होता है । शरीर में जब तक आत्मा है तभी तक मन, वचन, शरीर, इन्द्रियां आदि सभी अपना-अपना कार्य करते रहते हैं और इस तन से चेतन के निकलते ही, सब का काम एक साथ और एकदम बन्द हो जाता है । मधुमक्खी के छत्ते पर अधिकार करने का सबसे आसान तरीका यह है, कि रानी मक्खी को पकड़कर दूर ले जाया जाए, फिर एक-एक मक्खी को हटाने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी । रानी मक्खी के जाते ही शेष मक्खियाँ स्वयं चली जाती हैं । यह कभी नहीं हो सकता, कि रानी मक्खी के चले जाने के बाद भी, शेष मक्खियाँ अपना शहद चाटने के लिए वहीं पड़ी रहें । इस प्रकार हम देखते हैं, कि मधुमक्खियों में जीवन की कितनी सुन्दर व्यवस्था है और उनका शासन-तन्त्र कितनी अच्छी पद्धति से चलता है । आत्मा भी इस संसार में मधुकर राजा है । जब तक वह इस देहरूप छत्ते पर बैठा है, तभी तक मन, वचन, शरीर, इन्द्रिय तथा पुण्य, पाप, शुभ एवं अशुभ आदि का व्यापार चलता रहता है । यह आत्मा रूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001337
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size17 MB
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