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________________ ३०८ | अध्यात्म-प्रवचन वादी दर्शन का लक्ष्य एवं साध्य एक ही है-मोक्ष एव मुक्ति । साध्य में किसी प्रकार का विवाद नहीं है, विवाद है केवल साधन में । एक ने कहा है-मुक्ति का एक मात्र साधन ज्ञान ही है। दूसरे ने कहा है-मुक्ति का एक मात्र साधन, भक्ति ही है । और तीसरे ने कहा है, मुक्ति का एक मात्र साधन कर्म ही है। मैं विचार करता है कि एक ही साध्य को प्राप्त करने के लिए, उसके साधन के रूप में किसी ने ज्ञान पर बल दिया, किसी ने भक्ति पर बल दिया और किसी ने कर्म पर बल दिया। संसार में जितने भी साधना के मार्ग हैं, क्रिया-कलाप हैं अथवा क्रियाकाण्ड हैं, वे सब साधना के अलंकार तो हो सकते हैं, किन्तु उसकी मूल आत्मा नहीं। किसी भी पंथ का विरोध करना मेरा उद्देश्य नहीं है, मेरे कहने का तात्पर्य केवल इतना ही है, कि जो कुछ भी किया जाए, सोच समझ कर किया जाना चाहिए। प्रत्येक साधक की रुचि अलग-अलग होती है, कोई दान करता है, कोई तप करता है और कोई सेवा करता है। दान, तप और सेवा तीनों धर्म हैं, किन्तु कब, जबकि विवेक का दीपक घट में प्रकट हो गया हो । इसी प्रकार कोई सत्य की साधना करता है, कोई अहिंसा की साधना करता है और कोई ब्रह्मचर्य की साधना करता है। किसी भी प्रकार की साधना की जाए, कोई आपत्ति की बात नहीं है, परन्तु ध्यान इतना ही रहना चाहिए, कि वह साधना विवेक के प्रकाश में चलती रहे । अलग-अलग राह पर चलना भी कोई पाप नहीं है, यदि आत्मा के मूलस्वरूप की दृष्टि को पकड़ लिया है, तो जिस व्यक्ति के हृदय में विवेक के दीपक का प्रकाश जगमगाता है, वह जो भी साधना करता है, वह उसो में एकरूपता, एकरसता और समरसता प्राप्त कर लेता है। जीवन में समरसी भाव की उपलब्धि होना ही, वस्तुतः सम्यक्-दर्शन है। __ अध्यात्म-साधना के क्षेत्र में विशुद्ध ज्ञान का बड़ा ही महत्व है। भारत के अध्यात्मवादी दर्शनों में इस विषय में किसी प्रकार का विवाद नहीं है, कि ज्ञान भी मुक्ति का एक साधन है । वेदान्त और सांख्य एक मात्र तत्व-ज्ञान अथवा आत्म-ज्ञान को ही मुक्ति का साधन स्वीकार करते हैं । इसके अतिरिक्त कुछ दर्शन केवल भक्ति को ही, मुक्ति का सोपान मानते हैं और कुछ केवल क्रिया काण्ड एवं कर्म को ही मुक्ति का कारण मानते हैं । जैन-दर्शन का कथन है, कि तीनों का समन्वय ही, मुक्ति का साधन हो सकता है। इसमें किसी भी प्रकार का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001337
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size17 MB
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