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संसार और मोक्ष | ३०७
तेरे मन के अन्दर का मोक्ष हो तुझे मोक्ष में ले जाता है । यदि अंधकार से प्रकाश में आना तुझे अभीष्ट है, तो पहले अपने मन के अन्धकार को दूर कर । अन्दर मन में प्रकाश नहीं है, तो तेरे लिए बाहर भी प्रकाश नहीं है और यदि तेरे मन में अन्दर अन्धकार नहीं है, तो बाहर भी तेरे लिए अन्धकार नहीं है । पुण्य और पाप के बीज तथा धर्म और अधर्म के बीज पहले तेरे अन्तर्मन में ही प्रकट होते हैं। मनुष्य अपने जीवन में जो पुण्य करता है, वह क्यों करता है ? इसलिए कि उसके मन में पुण्य है। यदि मनुष्य अपने जीवन में पाप करता है, तो इसलिए, कि उसके अन्तर्मन में पाप है। जो कुछ तेरे अन्दर में है, वही तो बाहर प्रकट होता है। इसलिए तू बाहर में कैसा है, इसके लिए तुझे सर्वप्रथम यह सोचना होगा, कि मैं अन्दर में कैसा है ?
सम्यक् दर्शन के सम्बन्ध में एक बात और सोचने एवं समझने की है, कि उस पर किसी व्यक्ति विशेष या जाति विशेष की बपौती नहीं है और न उस पर किसी का पैतृक अधिकार है। जो श्रम एवं साधना करेगा, वही उसे प्राप्त करेगा। सम्यक् दर्शन कोई ऐसी वस्तु नहीं है, जिसे पिता अपने पुत्र को उत्तराधिकार में दे सके, अथवा गुरु अपने शिष्य को उत्तराधिकार में दे सके । वह कोई धन-वैभव को वस्तु नहीं है, वह कोई राज्य-सिंहासन नहीं है, जिसे उत्तराधिकार में अपने उत्तराधिकारी को सौंपा जा सके। वह तो साधक को अपनी निजी चीज है और अपनी निजी चीज पर सभी का अधिकार होता है। अपने स्वरूप की प्राप्ति का अधिकार सभी को है। शास्त्रकारों ने कहा है कि नव तत्वों की चर्चा अथवा नव पदार्थों की चर्चा, केवल बुद्धि-विलास के लिए नहीं है, यह तो स्वस्वरूप को समझने के लिए है और स्वस्वरूप की उपलब्धि के लिए है । आत्म-विवेक और आत्मपरिबोध के लिए है।
भारतीय दर्शनों में, जिनका मूलस्वर में एक ही प्रकार का सुनता हूँ, किन्तु अपनी बात को कहने की जिनकी शैलो भिन्न-भिन्न है, प्रश्न उठाया गया है कि मोक्ष एवं मुक्ति का मार्ग, उपाय, साधन एवं कारण क्या है ? यह प्रश्न बहुत ही गम्भीर है। प्रत्येक युग के समर्थ आचार्य ने अपने युग की जन-चेतना के समक्ष इसका समाधान करने का प्रयत्न किया है। किन्तु जैसे-जैसे युग आगे बढ़ा, वैसे-वैसे यह प्रश्न भी आमे बढ़ता रहा, और हजार वर्ष पहले जैसा प्रश्न था, वैसा प्रश्न आज भी है। भौतिकवादी दर्शन को छोड़कर, समग्र अध्यात्म
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