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________________ २६८ | अध्यात्म प्रवचन ले जाना चाहता है । फलतः वह अनुभवी गुरु बनने के लिए हा शिष्य बनता है। हीन से हीन और अन्धकार में भटकता हुआ व्यक्ति जब गुरु के समक्ष आकर खड़ा होता है, तो समझ लीजिए, वह भिखारी बनने के लिए नहीं आया है, बल्कि गुरु के सानिध्य में रहकर गुरु बनने के लिए ही आया है। यह ठीक है कि आज ही वह गुरु नहीं बन सकता, किन्तु गुरू के सानिध्य में रहकर और अध्यात्म-योग की साधना करके वह भी एक दिन अवश्य ही गुरु बन सकता है। मनुष्य की आत्मा में अपार शक्ति और अमित बल है। जब वह साधना-क्षेत्र में उतर कर उसमें स्थिर बन जाता है, तो मनष्य तो क्या, स्वर्ग के देव भी उसके चरणों में नत मस्तक हो जाते हैं। यह भी क्या अजब-गजब की बात है, कि जब संसार के अन्य पंथ देवदेवियों की पूजा की बात कहते हैं और देव-पूजा में धर्म बतलाते हैं, तब अध्यात्मवादी जैन-दर्शन यह आघोष करता है, कि भौतिक शक्ति में भले ही देव मनुष्य से बड़ा हो, किन्तु अध्यात्म-साधना के क्षेत्र में तो मनुष्य ही देवता से बड़ा है। जब मनुष्य अपने बन्धनों को तोड़ कर, अपने अन्तर के प्रकाश को प्राप्त कर लेता है, तब वह देवाधिदेव बन जाता है । जिस मनुष्य में देवाधिदेव बनने की शक्ति विद्यमान है, जिसमें आत्मा से परमात्मा बनने का बल है, फिर क्या बात है कि वह मनुष्य शिष्य से गुरु न बन सके ? प्रत्येक मानव में अपनी आत्मशक्ति को जागृत करके, जब परमात्मा बनने की शक्ति विद्यमान है, तब वह गुरु के ऊँचे सिंहासन पर आरूढ़ क्यों नहीं हो सकता ? अवश्य हो सकता है ? ___ मैं आपसे बुद्धि और तर्क की बात कर रहा था। मुझे स्वयं को तर्क बहुत पसन्द है । जब कभी कोई जिज्ञासु व्यक्ति मुझसे तर्क करता है, तब मुझे बड़ी प्रसन्नता होती है। वह स्थिति मुझे कितना आनन्द देती है, जब कि मैं यह देखता हूँ, एक गुरु किसी ग्रन्थ की रचना करता है और उसका शिष्य उसे भी आगे बढ़कर उस पर भाष्य लिखता है । फिर उसका भी शिष्य उस पर एक और विशाल टीका रचता है। इस प्रकार तर्क और प्रति तर्क की यह आगे कड़ी जुड़ती चली जाती है। इससे अन्धकार में पड़े प्रतिपाद्य विषय का और अधिक स्पष्टीकरण हो जाता है। हमें इस बात को नहीं भूलना है, कि हम बुद्धिवादी एवं तर्कवादी होकर भी आदर्शवादी और श्रद्धावादी हैं, और आदर्शवादी एवं श्रद्धावादी होकर भी बुद्धिवादी एवं तर्कवादी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001337
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size17 MB
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